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________________ श्री सिद्धचक्र विधान अन्तरगत अष्ट स्वरुप, गुणमई राजत हैं, नमूं सिद्धचक्र शिव-भूप, अचल विराजत हैं। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिने नमः श्री समत्तणाण-दंसणवीर्यसुहम त्तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह अष्टगुणसंयुक्ताय दीपंनिर्व.स्वाहा ॥६॥ धरि अग्नि धूप के ढेर, गन्ध उड़ावत हूँ, कर्मो की धूप बखेर, ठोंक जरावत हूँ। अन्तरगत अष्ट स्वरुप, गुणमई राजत हैं, नमूं सिद्धचक्र शिव-भूप, अचल विराजत हैं। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नमः श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम त्तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह अष्टगुणसंयुक्तभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥७॥ जिन-धर्म वृक्ष की डाल शिवफल सोहत हैं, इम धरि फल कंचन थाल भविमन मोहत हैं। अन्तरगत अष्ट स्वरुप, गुणमई राजत हैं, नमूं सिद्धचक्र शिव-भूप, अचल विराजत हैं। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नमः श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह अष्टगुणसंयुक्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥८॥ करि दर्व अर्घ वसु जात यातें ध्यावत हूँ, अष्टांग सुगुण विख्यात तुम ढिंग पावत हूँ। अन्तरगत अष्ट स्वरुप, गुणमई राजत हैं, नमूं सिद्धचक्र शिव-भूप, अचल विराजत हैं। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नमः श्री समत्तणाणदसणवीर्य सुहम तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह अष्ट गुणसंयुक्ताय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ॥९॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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