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________________ श्री सिद्धचक्र विधान दीरघ शशि किरण समान अक्षत ल्यावत हूँ, शशिमंडल सम बहुमान पूज रचावत हूँ। अन्तरगत अष्ट स्वरुप, गुणमई राजत हैं, नमूं सिद्धचक्र शिव-भूप, अचल विराजत हैं। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नमः श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह अष्टगुणसंयुक्ताय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ॥३॥ तुम चरणचन्द्र के पास, पुष्प धरे सोहै, मानू नक्षत्रन की रास ,सोहत मन मोहैं । अन्तरगत अष्ट स्वरुप, गुणमई राजत हैं, नमूं सिद्धचक्र शिव-भूप, अचल विराजत हैं। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नमः श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह अष्टगुणसंयुत्तेभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥४॥ उत्तमनेवज बहु भांति, सरस सुधा साने, अहिंमिंदन मन ललचाय भक्षण उमगाने । अन्तरंगत अष्ट स्वरुप, गुणमई राजत हैं, नमूं सिद्धचक्र शिव-भूप, अचल विराजत हैं। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नमः श्री समत्तणाणदसणवीर्य सहम तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह अष्ट गुणसंयुक्ताय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥५॥... फैली दीपन की जोति, अति परकाश करै, जिम स्याद्वाद उद्योत संशय तिमिर हरै।
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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