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________________ CO सिद्ध टोक --- ------- SEDISTAN समा निरस्तगुरुत्वलघुत्वकभाव, तथा भवकाननदुःसहदाव । द्विधातुलकर्मगतेन विकाय, पुनातु सदा मम सिद्धनिकाय ॥८॥ द्विधाहतदुःखदवेदनपक्ष, स्वकात्मसमर्पितशास्वतसौख्य । अंबाधकदेवगुणेन विकाय, पुनातु सदा मम सिद्धनिकाय ॥९॥ ॐ ह्रीं अर्ह असिया उसा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झौ झौ नमः पूर्णाम् स्वाहा । पत्ता-विधुतकुविधिपाशं मुक्तिलीलाविलासम्, परमगुणनिवासं चित्सरोराजहंसम् । विनुतनृपसुचकैः संस्तुतं सिद्धचक्र।मतनु च निजभक्त्या वन्दते शौभचन्द्रः॥१०॥ इत्याशीर्वादः METAFFA1% . चतुर्थ जयमालाका अर्थ . : Vers 6 मै उन सिद्ध भगवान्की, मोक्षलक्ष्मीकी प्राप्ति के लिये भक्तिपूर्वक विमल जयमालाके द्वारा स्तुति करता हूं जिनका अपने मनमें स्वयं योगीन्द्र भी दुष्कर्मीकी व्युच्छित्तिके लिये चिन्तवन करते है, जिनके चरण कमल इन्द्र तथा नरेन्द्रोंके द्वारा भी पूजित है, कर्मरूप अवधसे जो रहित, और सदा अष्ट गुणोके अलंकारभूत है ॥१॥ - SIN
SR No.010543
Book TitleSiddhachakra Mandal Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size15 MB
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