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________________ -(लिए अष्क ही मंडल विधान - --- - - - -- ARNA पात्र, सम्यग्दर्शन के द्वारा शोभायमान, नाम निर्मोह विशुद्ध सिद्धसमूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥ ६॥ मनुष्यों और देवोंके द्वारा वन्दित है निर्मल भाव जिनके, अनन्त मुनीश्वरों के द्वारा पूज्य, मुख के विकार से रहित, सदा रहनेवाला है उदय जिनका, पूर्ण तेज के स्वामी, निर्मोह विशुद्ध सिद्धसमूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥ ७॥ दंभरहित, तृष्णा से शून्य, विगत दोष, निद्रा रहित, पर 'और अपर कल्याण के करने वाले, साररूप, निरालस्य, कोप रहित, रूप रहित और शंका रहित निर्मोह विशुद्ध सिद्धसमूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥ ८॥ जरा और मरण से रहित, तथा गमनागमन से भी रहित, विशिष्ट चिन्ता-ध्यानादिके विषय, निर्मल, अहंकार रहित, अचिन्त्य है चरित्र जिनका ऐसे, हे दर्परहित' निर्मोह विशुद्ध सिद्धसमूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥ ॥ वर्ण रहित, गध रहित, मान-लोभ-माया-शरीर-शब्द और शोभा से रहित, आकुलतासे रहित, केवल-एकाकिन्-शुद्धात्मन् , सबके लिये हितकर, निर्मोह विशुद्ध सिद्धसमूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥ १०॥ इस तरह अनुपम समयसाररूप, सुन्दर चैतन्य ही है चिन्ह जिनका, पुद्गलकेनिमित से होने वाली परिणतिसे मुक्त, पद्मनन्दा आचार्य के द्वारा बन्ध, सम्पूर्ण गुणों के निवासस्थान, विशुद्ध सिद्धचक्र का जो स्मरण करता है, उनको नमस्कार करता है, या उसकी स्तुति करता है, वह मुक्ति को प्राप्त हुआ करता है॥॥११॥ SURYANA
SR No.010543
Book TitleSiddhachakra Mandal Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size15 MB
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