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________________ ------------ (सिद्ध आ ही मंडल विद्यान्न - CRIMER सर्वसाधारण संसारी जीवों में पाये जाने वाले दोष-क्षुधा-पिपासा-चिन्ता आश्चर्य आदि तथा कपायरूपी कलंक के भार को नष्ट कर दिया है, पवित्र केवल ज्ञान और दर्शन को जो धारण करने वाले है, जिन्होने संसार के जन्म मरण और जरा रूप लेश का नाश कर दिया है, आत्म रस रूपी अमृत से जो मथर हैं; पुनः जन्म धारण करने वाले नहीं है, भुवनत्रय के मस्तकरूपी द्वार का उद्घाटन करने के लिये गज के समान हैं, समभाव के द्वारा जिन्होने जीव के-अपनी आत्मा के या जीवों के गुणो को प्रकाशित कर दिया है, उत्कृष्ट निश्चल और नित्य गुण ही हैं आभरण जिनके, ऐसे अनेक गुणो से शोभायमान परमात्मा सिद्ध परमेष्ठियों को मेरा नमस्कार हो. . इस जगत में जिनके नाम मात्र का स्मरण करने में आदरभाव रखने वाले व्यक्तियों को सर्प हाथी आदि घात करने वाले तथा भयकर जलचर जीव या सिंह अष्टापद आदि क्षणभर मे उल्टे सुखशांति के निमित्त बनजाते है, जिनका चितवन करने से दिव्य विषयों को प्राप्ति हुआ करती है, एवं जिनका ध्यान करने से सिद्धिरूपी रमणी वशीभूत होजाया करती है, उन सिद्ध परमेष्ठियों को मै अर्ध-पूर्णार्घ अर्पण करता हू॥ . भक्ति से परिपूर्ण है मन जिसका ऐसा जो व्यक्ति चिद्रूप सिद्ध भगवान का अतिशय करके और पुनः २ पूजन करता है वह " पद्मकीर्ति" के समान होकर सिद्धि को प्राप्त किया करता है। CHANNEL JAN/-----
SR No.010543
Book TitleSiddhachakra Mandal Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size15 MB
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