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________________ (सिद्ध झाला ही बहुल विधा- चिदपं सिद्धचक्रं यो यायजेद्भक्तिमानसः । पद्मकीर्तिसमो भूत्वा लभते सिद्धिसंगतिम् ॥ आशीर्वादः SEE द्वितीय जयमाला का अर्थ दूर कर दिया है विकल्प समूह-अनेक तरह के सकल्प विकल्पों के रण-कोलाहल को जिन्होने, लोक में कर्मरूपी सघन अग्नि के समूह को जिन्होने भस्म-शांत कर दिया है, और जिनके भाव अनेक गुणो से शोभित है ऐसे परमात्मरूप सिद्धों के समूह को मै नमस्कार करता हू ॥१॥ चैतन्यस्वरूप को जो प्राप्त होगये है, देवेन्द्र नरेन्द्र और घरणीन्द्र के द्वारा भी जिनको नमस्कार किया गया है, आतप साद-खेद विषाद और रति से जो रहित हैं, महान् शान्ति को प्राप्त, नष्ट कर दिया है पापरूप मति को जिन्होने, मद और खेद-रूपी पर्वत का नाश करने के लिये जो वज्र के समान है, भयरूपी भयकर निशाचर के लिये जो सुन्दर सूर्य के समान है, जो उत्तम मुक्तिरूपी वधू के रमण, शब्द अथवा गति से रहित, तथा चित्स्वरूप अनतं गुणों के धारक है, जिन्होने काम के अंश को भी जीत लिया है; जो उत्तम ज्ञान दर्शन सुख और वीर्य, इस तरह अनन्त चतुष्टय स्वरूप है, जिन्होने अपने ज्ञान के द्वारा समस्त वस्तुओं को देख लिया है, जो ससाररूपी समुद्र के पार को भले प्रकार प्राप्त होगये है, जिन्होने Ligemsja
SR No.010543
Book TitleSiddhachakra Mandal Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size15 MB
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