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________________ कैरुणा का अजस्त्र स्रोत सिद्धार्थ भगवान् का भक्त था। वह कुछ दिनों से भगवान् की सन्निधि में रह रहा था। वह अतिशयज्ञानी था। उसने कहा, 'अच्छंदक ! इतने सीधे प्रश्न का उत्तर पाने के लिए भगवान का ध्यान भंग करने की क्या आवश्यकता है ? इसका सीधा-सा उत्तर है। वह मैं ही बता देता हूं। यह तिनका जड़ है। इसमें अपना कर्तृत्व नहीं है । अतः तुम इसे तोड़ना चाहो तो टूट जाएगा और नहीं चाहो तो नहीं टूटेगा।' उपस्थित जनता ने कहा, 'अच्छंदक इतनी सीधी-सरल बात को भी नहीं जानता तब गूढ़ तत्त्व को क्या जानता होगा?' जन-मानस में उसके आदर की प्रतिमा खंडित हो गई। साथ-साथ उसके चिंतन की प्रतिमा खंडित हो गई। उसने सोचा था- महावीर कहेंगे कि तिनका टूट जाएगा तो मैं इसे नहीं तोडूंगा और वे कहेंगे कि नहीं टूटेगा तो मैं इसे तोड़ दूंगा। दोनों ओर उनकी पराजय होगी। किन्तु जो महावीर को पराजित करने चला था, वह जनता की संसद में स्वयं पराजित हो गया। अच्छंदक अंवसर की खोज में था। एक दिन उसने देखा, भगवान् अकेले खड़े हैं । अभी ध्यान-मुद्रा में नहीं हैं। वह भगवान के निकट आकर बोला, 'भंते ! आप सर्वत्र पूज्य हैं । आपका व्यक्तित्व विशाल है। मैं जानता हूं, महान व्यक्तित्व क्षुद्र व्यक्तित्वों को ढांकने के लिए अवतरित नहीं होते । मुझे आशा है कि भगवान् मेरी भावना का सम्मान करेंगे।' __इधर अच्छंदक अपने गांव की ओर लौटा और उधर भगवान् वाचाला की ओर चल पड़े । उनकी करुणा ने उन्हें एक क्षण भी वहां रुकने की स्वीकृति नहीं दी। १. आवश्यफणि, पूर्वभाग, पृ० २७५-२७० ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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