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________________ पुरुषार्थ का प्रदीप घर को छोड़ अज्ञात की ओर चले जा रहे हैं। उनके साथ लक्ष्मण हैं, सीता है और धनुप है। महावीर भी घर को छोड़ अज्ञात की और चले जा रहे हैं । उनके साध न कोई पुरुष है, न कोई स्त्री है और न कोई शस्त्र । दोनों के सामने लक्ष्य है-स्वतंत्रता की दिशा को आलोक से भर देना। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए दोनों ने युद्ध किए हैं और शत्रु-वर्ग का दमन किया है युद्ध और दमन की भूमिका दोनों की भिन्न है। राम के शत्रु हैं-भद्र मनुष्यों की स्वतंत्रता का अपहरण करने वाले दस्यु और महावीर के शत्रु हैं-आत्मा की स्वतंत्रता का अपहरण करने वाले संस्कार । राम ने उनका दमन किया धनुप से और महावीर ने उनका दमन किया ध्यान और तपस्या से । राम कर्मवीर हैं और महावीर धर्मवीर है । ये दोनों भारतीय संस्कृति के महारथ के ऐसे दो चक्र हैं, जिनसे उसे निरंतर गति मिली है और मिल सकती है। महावीर अपनी जन्मभूमि से प्रस्थान कर कर्मारग्राम (वर्तमान कामनछपरा) पहुंचे। उन्हें खाने-पीने की कोई चिंता नहीं थी। दीक्षा-स्वीकार के प्रथम दिन वे उपवासी थे और आज दीक्षा के प्रथम दिन भी वे उपवासी हैं। स्थान के प्रति उनकी कोई भी आसक्ति नहीं है । मुख-सुविधा के लिए कोई आकर्पण नहीं है। उनके सामने एक ही प्रश्न है और वह है परतंत्रता के निदान की खोज । __ महावीर गांव के बाहर जंगल के एका पावं में खड़े हैं। वे ध्यान में लीन हैं। उनके चक्षु नासान पर टिके हुए है । दोनों हाथ घुटनों की ओर झुके हुए हैं । उनकी स्थिरता को देग दूर से आने वालों को स्तम्भ की अवस्थिति का प्रतिभास हो रहा है। एक ग्वाला अपने बैलों के साथ घर को लौट रहा था। उसने महावीर को जंगल में पड़े हुए देवा । उसने बैल वहीं छोड़ दिए। वह अपने घर चला गया। महावीर सत्य की गोज में वोए हुए थे। वे अन्तर् जगत् में इतने तन्मय धे कि उन्हें बाहर को पटना का कोई आभास ही नहीं हुआ। बैल चरते-चरते जंगल में आगे चले गए। ग्वाना धर का काम निपटाकर वापस आया। उसने देखा वहां बल नहीं । उसने पूछा, 'मेरे बैल कहां हैं ?' महावीर ने इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया। वे अपने अन्तर के प्रश्नों का उत्तर देने में हमने लीन थे कि उन्होंने ग्वाले का प्रश्न सुना ही नहीं, फिर उत्तर गौरी देते? मागे ने सोना इन्हें बेनों का पता नहीं है। वह उन्हें खोजने के लिए जंगल सी और चल पडा। सूरज पहिला को पाटियों के पार पहुंच चुका था। गत ने अपनी निशान या फैला दीं। तमा ने भूमि के मुंह पर श्यामल पूंघट डाल दिया। १. पता बाप । स्थानराम
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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