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________________ वंदना २८९ जैसे-शब्दों में मेघ का गर्जन, ताराओं में चन्द्रमा, गंध वस्तुओं में चन्दन श्रेष्ठ है, वैसे ही मुनियों में महावीर श्रेष्ठ हैं । ४. जहा सयंभू उदहीण सेठे, णागेसु वा धरणिंदमाहु सेनें । खोओदए वा रस वेजयंते, तहोवहाणे मुणि वेजयंते ।। जैसे-समुद्रों में स्वयम्भू, नागदेवों में धरणेन्द्र, रसों में इक्षु रस श्रेष्ठ है, वैसे ही तपस्वियों में महावीर श्रेष्ठ हैं । ५. वणेसु या णंदणमाहु सेठं, णाणेण सीलेण य भूतिपण्णे ।' जैसे-वनों में नन्दनवन श्रेष्ठ है, वैसे ही ज्ञान और शील से महावीर श्रेष्ठ हैं। ६. दाणाण सेठं अभयप्पयाणं, सच्चेसु या अणवज्जं वयंति । ___ तवेसु वा उत्तम बंभचेरं, लोगुत्तमे समणे णायपुत्ते ।।' जैसे-दानों में अभयदान, सत्य में निरवद्य वचन, तप में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है, वैसे ही श्रमणों में महावीर श्रेष्ठ हैं। ७. निव्वाणसेट्ठा जह सव्वधम्मा, ण णायपुत्ता परमत्थि णाणी। जैसे-~~-धर्मों में निर्वाणवादी धर्म श्रेष्ठ है, वैसे ही ज्ञानियों में महावीर श्रेष्ठ हैं। उनसे अधिक कोई ज्ञानी नहीं है। १. सूयगडो : १६॥२०॥ २. सूयगडो : १।६।१८। ३. सूयगहो : १।६।२३ । ४. सूपगटो : ११६॥२४॥
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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