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________________ २८० श्रमणं महावी साढ़े बारह वर्षों में केवल कुछेक मिनटों की नींद लेना सामान्य प्रकृति अनुकूल नहीं लगता। पर योगी के लिए यह असम्भव नहीं है। जो योगी अपन चेतना को चिर-जागृत कर लेता है, जिसका सूक्ष्म शरीर सक्रिय हो जाता है, उसक नींद की आवश्यकता नहीं होती है या कम होती है। शारीरिक परिवर्तन से में कभी-कभी ऐसी घटनाएं घटित हो जाती हैं। आरमाण्ड जैक्विस लुहरवेट का जना ईसवी सन् १७६१ में फ्रांस में हुआ था। वे दो वर्ष के थे तब उनके सिर पर को वस्तु गिरी । चोट गहरी लगी। उन्हें अस्पताल ले जाया गया। वे कई दिनों तर मूच्छित रहे । कुछ दिनों के उपचार के बाद उनकी चेतना वापस आई। चोट कोई शारीरिक परिवर्तन हो गया । उनकी नींद समाप्त हो गई। उन्हें नींद ला वाली औषधियां दी गईं, पर नींद नहीं आई। नींद शरीर की सामान्य प्रकृति है। किन्तु चेतना की चिर-जागृति औ शारीरिक परिवर्तन के द्वारा उस प्रकृति में परिवर्तन होना सम्भावित है और कार के अविरल प्रवाह में समय-समय पर ऐसा हुआ भी है। ६. आहार १७. मायण्णे असणपाणस्स ।' - भगवान् भोजन और पानी की मात्रा को जानते थे और उनका माद के अनुरूप ही प्रयोग करते थे। १८. ओमोयरियं चाएति, अपुढेंवि भगवं रोगेहिं।' ~भगवान् स्वस्थ होने पर भी कम खाते थे। रोग से स्पृष्ट मनुष्य अधिः नहीं खा सकते। भगवान् रुग्ण नहीं थे, फिर भी अधिक नहीं खाते थे। १६. नाणुगिद्धे रसेसु अपडिन्ने । -~-भगवान् सरस भोजन में आसक्त नहीं थे । २०. अदु जावइत्थ लूहेणं, ओयण-मंथु-कुम्मासेणं ।' -~भगवान् भोजन के विविध प्रयोग करते थे। एक बार उन्होंने रूद भोजन का प्रयोग किया। वे कोरे ओदन, मंथु और कुल्माष खाते रहे। १. आयारो : ६।२।२० । २. मायारो: ।।४।१। ३. आयारो: ६।१२० । ४. आयारो:६।४४।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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