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________________ निर्वाण २७३ राजगृह से विहार कर अपापा पुरी में आए। वहां की जनता और राजा हस्तिपाल ने भगवान् के पास धर्म का तत्त्व सुना। भगवान् के निर्वाण का समय बहुत समीप आ रहा था । भगवान् ने गौतम को आमंत्रित कर कहा-'गौतम ! पास के गांव में सोमशर्मा नाम का ब्राह्मण है। उसे धर्म का तत्त्व समझाना है। तुम वहां जाओ और उसे सम्बोधि दो।' गौतम भगवान् का आदेश शिरोधार्य कर वहां चले गए। भगवान् ने दो दिन का उपवास किया। वे दो दिन-रात तक प्रवचन करते रहे। भगवान् ने अपने अंतिम प्रवचन में पुण्य और पाप के फलों का विशद विवेचन किया। भगवान् प्रवचन करते-करते ही निर्वाण को प्राप्त हो गए। उस समय रात्रि चार घड़ी शेष थी। वह ज्योति मनुष्य लोक से विलीन हो गई जिसका प्रकाश असंख्य लोगों के अन्तःकरण को प्रकाशित कर रहा था। वह सूर्य क्षितिज के उस पार चला गया जो अपने रश्मिपुंज से जन-मानस को आलोकित कर रहा था। ___ मल्ल और लिच्छवि गणराज्यों ने दीप जलाए। कार्तिकी अमावस्या की रात जगमगा उठी। भगवान् का निर्वाण हुआ उस समय क्षणभर के लिए समूचे प्राणी-जगत् में सुख की लहर दौड़ गई। ईसा पूर्व ५९९ (विक्रम पूर्व ५४२) में भगवान् का जन्म हुआ। ईसा पूर्व ५६६ (विक्रम पूर्व ५१२) में भगवान् श्रमण बने । ईसा पूर्व ५५७ (विक्रम पूर्व ५००) में भगवान् केवली बने । ईसा पूर्व ५२७ (विक्रम पूर्व ४७०) में भगवान् का निर्वाण हुआ। १. सौभाग्यपंचम्यादि पर्वकथा संग्रह, पन्न १०० । २. समवाओ, ५५।४। ३. पल्पसूत्र, सूत्र १४७; सुबोधिका टोका-चतुर्पटिकावशेषायां रातो।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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