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________________ अहिंसा के हिमालय पर हिंसा का वज्रपात २६९ की शक्ति को स्वयं झेलकर संघर्ष को समाप्त कर दिया। गोशालक शान्त होकर अपने स्थान पर चला गया । वातावरण जैसे उत्तेजित हुआ, वैसे ही शान्त हो गया। __भगवान् श्रावस्ती से विहार कर में ढिय ग्राम पहुंचे। वहां शाणकोष्ठक-चत्य में ठहरे। भगवान् के शरीर में पित्तज्वर और दाह का भयंकर प्रकोप हो गया। साथसाथ रक्तातिसार भी हो गया। भगवान् के रोग की चर्चा सुन चारों वर्गों के लोग कहने लगे-भगवान् महावीर गोशालक के तप-तेज से पराभूत हो गए हैं। गोशालक की भविष्यवाणी सही होगी। वे छह मास में मर जाएंगे, ऐसा प्रतीत हो रहा है । यह चर्चा दूर-दूर तक फैली। शाणकोष्ठक-चैत्य के पास ही मालुयाकच्छ था। वहां भगवान् महावीर का अंतेवासी सिंह नाम का अनगार तप और ध्यान की साधना कर रहा था। यह चर्चा उसके कानों तक पहुंची। वह मानसिक व्यथा से अभिभूत हो गया। वह आतापनभूमि से उतरा और मालुयाकच्छ में आकर जोर-जोर से रोने लगा। भगवान् महावीर ने कुछ श्रमणों को बुलाकर कहा-'तुम जाओ, मालुयाकच्छ में मेरा अंतेवासी सिंह नाम का अनगार मेरी मृत्यु की आशंका से आशंकित होकर रो रहा है । उसे यहां बुलाकर ले आओ।' श्रमणों ने भगवान् महावीर को वंदना की। वे वहां से चले और मालुयाकच्छ में पहुंचे। उन्होंने देखा सिंह अनगार सिसक-सिसक कर रो रहा है। वे सिंह को सम्बोधित कर बोले-सिंह ! तुम्हें भगवान् बुला रहे हैं।' उसे थोड़ा आश्वासन मिला। वह कुछ संभला। वह आए हुए श्रमणों के साथ भगवान् के पास पहुंचा । भगवान् बोले-'सिंह ! तू मेरे रोग का संवाद सुन मेरी मृत्यु की आशंका से आशंकित हो गया। तेरे मन में संशय पैदा हो गया कि कहीं गोशालक की बात सच न हो जाए। तू संशय से अभिभूत होकर रोने लग गया। क्यों, सच है न ?' 'भंते ! ऐसा ही हुआ। "सिंह ! तू चिंता को छोड़। आशंका को मन से निकाल दे। मैं अभी सोलह वर्ष तक तुम्हारे वीच रहूंगा।' __ भगवान् की वाणी सुन सिंह का चित्त हर्षोत्फुल्ल हो गया। उसका चेहरा खिल उठा। उसने भगवान् के रोग पर चिंता प्रकट की। भगवान् से दवा लेने का अनुरोध किया। भगवान् ने कहा--- 'काल का परिपाक होने पर रोग अपने आप शान्त हो जाएगा।' सिंह ने कहा---'नहीं, भंते ! कुछ उपाय कीजिए।' भगवान् ने कहा'सिंह ! तुम गृहपत्नी रेवती के घर जाओ। उसने मेरे लिए कुम्हड़े का पाक तयार किया है । वह तुम मत लाना । उसने अपने घर के लिए विजौरापाक बनाया है, वह ले आओ।' सिंह रेवती के घर गया। रेवती ने मुनि को वन्दना की और आने का प्रयोजन पूछा। सिंह ने सारी बात बता दी। रेवती ने आश्चर्य की मुद्रा में
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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