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________________ सहयात्रा : सहयात्री २४९ भगवान् महावीर जनपद-विहार करते हुए साकेत पहुंचे । भगवान् के आगमन का संवाद पाकर हज़ारों-हज़ारों व्यक्ति उनकी उपासना के लिए जाने लगे। शवंजय भी भगवान् के पास गया । जनता की भीड़ देखकर किरात ने जिनदेव से पूछा 'इतने लोग कहां जा रहे हैं ?' 'रत्नों का व्यापारी आया है, उसके पास जा रहे हैं।' 'चलो, हम भी चलें।' किरात और जिनदेव-दोनों भगवान् के पास आए। किरात ने पूछा'भंते ! मैंने सुना है कि आपके पास बहुत रत्न हैं ?' 'तुमने सही सुना है।' 'मैं उन्हें देखना चाहता हूं।' 'क्या सच कह रहे हो ?' 'झूठ क्यों कहूंगा ?' 'तो क्या सचमुच रत्नों को देखना चाहते हो?' 'बहुत उत्सुक हूं, यदि आप दिखाएं तो।' "मैं कौन दिखाने वाला । तुम देखो वे तुम्हारे पास भी हैं।' 'मेरे पास कहां हैं, भंते ?' 'देखना चाहो तो तुम्हारे पास सब कुछ है।' 'कहां है ? आप बतलाइए । मैं अवश्य देखना चाहता हूं।' 'तुम अब तक बाहर की ओर देखते रहे हो, अब भीतर की ओर देखो। देखो, और फिर गहराई में जाकर देखो।' किरात की अन्तर्यात्रा शुरू हो गई। वह भीतर में प्रवेश कर गया। उसने रत्नों की ऐसी ज्योति पहले कभी नहीं देखी थी। वह ज्योति की उस रेखा पर पहुंच गया जहां पहुंचने पर फिर कोई तमस् में नहीं लौटता। वह सदा के लिए महावीर का सहयात्री बन गया।' २. अरब के दक्षिणी प्रान्त में आर्द्र नाम का प्रदेश था। वहां आर्द्रक नाम का राजा था। उसका पुत्र था आर्द्रकुमार । एक बार सम्राट् श्रेणिक ने महाराज आर्द्रक को उपहार भेजा। आर्द्रकुमार पिता के पास बैठा था। उसने सोचा, श्रेणिक मेरे पिता का मित्र है। उसका पुत्र मेरा मित्र होना चाहिए। उसने दूत को एकान्त में बुलाकर पूछा । दूत ने अभयकुमार का नाम सुझाया। आर्द्रकुमार ने अभयकुमार के लिए उपहार भेजा । अभयकुमार ने उसका उपहार स्वीकार किया। दोनों मित्र बन गए। अभयकुमार ने बदले में कुछ धर्मोपकरण भेजे। उन्हें देख १. आवश्यकचूणि, उत्तरभाग, पृ० २०३, २०४ ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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