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________________ ममता : दो पाग्यं दो कोण २३५ थे। उन नमय मकुल उदायी पनियाजक महनी परिषद् के माघ परियाजका राम में बाम करता था। भगवान् बुद्ध पूर्वाह्न के समय नमुन्न उदायी के पास गए । उदायी ने भगवान बुद्ध ने बमोपदेश देने का यनरोध किया। भगवान ने पाहा-'अदाची! तुम्ही पट काही ।' तब उदायी ने कहा-"मने ! पिछले दिनों जो नवंश और गवंदर्गी होने का दावा करते हैं, चलते, गडे, सोते. जागते भी मुझे निरन्तर मान दान उपस्थित रहता है, यह कहते हैं, ये प्रश्न पूछने पर इधर-उधर जाने लगे। बाहर की कथा में जाने लगे। उन्होंने कोप, हेप और अविश्वास प्रकट किया। तब भंते ! मुझे भगवान् के ही प्रति प्रीति उत्पन्न हुई।' 'पान है ये उदायो ! जो गवंश और नवंदी होने का दावा करते हैं और उधर-उधर जाने लगे?' मंते ! निग्गंठ नातपुत्त ।' जैन दर्शन का अभिमत है कि जिनका नान बनावृत हो जाता है, यह सर्वज्ञ और मवंदी बन जाता है। महावीर ही गन और मवंदी हो सकता है, ऐसा महावीर ने नहीं कहा। उन्होंने कहा-जानावरण और दर्शनावरण के बिनय की गाधना मारने वाला कोई भी व्यक्ति मवंश और सवंदर्गी हो सकता है। भगवान् महावीर की नवंम और नवंदी के रूप में मवंत प्रसिदि धी-पह उरत धर्म से स्पष्ट है। माहाना आलनिक उपलब्धि है। बाह्म को देखने वाली आयें उमे जान नातीपातीं। भगवान पाावं. मिप्य भगवान महावीर पं. नवंशत्य को महमा बीमार नही कन्ने । ममीक्षा के बाद ही उन स्वीकार करते थे। र बार भगवान् पाणिज्वग्राम रे. पाश्र्ववर्ती दूतिपलाल चत्य में ठहरे हुए । उमममय भगवान् पा लिगांगर नामक प्रमण भगवान के पानमा और अनेक प्रश्न पूछ। प्रश्नोत्तों से कम में भगवान ने पहा-चोव नेता पाने लोप हो जावल रतलामा लिए में कहता कि जीप मत् रूप में उत्पन्न और पता होने है। मांगेय वन-मन ! साप जो पर है, पर स्वयं जानते हैवा भी जानी : आप किसी ना दिना पहने है या गुनकर पहने है ?' ने पहा याना, दिना जानता है।' AM " नातान बनायट होता , घर मितु को भी E RE ! मिड और मिन-दोनो जालना प ER नानी पसाहारा देने के लिए हो गया रे दादान होना
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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