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________________ २३० श्रमण महावीर भगवान बुद्ध का यथार्थवादी जीवन चमत्कारों की परछाइयों से ढंक गया । जैन आचार्य कुछ समय तक यथार्थवादी धारा को चलाते रहे। पर लोक-संग्रह का भाव यथार्थवाद को कब तक टिकने देता? जैन लेखक भी पौराणिक प्रवाह में बह गए । महावीर की यथार्थवादी प्रतिमा चमत्कार की पुष्पमालाओं से लद गई । अब प्रस्तुत हैं कुछ निदर्शन १. भगवान् महावीर का जन्म होते ही इन्द्र का आसन प्रकंपित हुआ। उसने अपने ज्ञान से जान लिया कि भगवान् महावीर का जन्म हुआ है। वह बहुत प्रसन्न हुआ और अपने देव-देवियों के परिवार को लेकर भगवान् के जन्म-स्थान पर पहुंचा । वह भगवान् की माता को प्रणाम कर भगवान् को मेरु पर्वत के शिखर पर ले गया। जन्माभिषेक के लिए जल के एक हजार आठ कलश लेकर देव खड़े हुए तब इन्द्र का मन आशंका से भर गया। क्या यह नवजात शिशुः इतने जल-प्रवाह को सह लेगा? भगवान् ने अपने ज्ञान से यह जान लिया। वे अनन्तबली थे। उन्होंने मेरु के शिखर को अपने बाएं पैर के अंगूठे से थोड़ा-सा दबाया तो वह विशाल पर्वत कांप उठा । इन्द्र को अपने अज्ञान का भान हुआ। उसने क्षमायाचना की, फिर जलाभिषेक किया। यह घटना आगम-साहित्य में नहीं है। उसके व्याख्या-साहित्य में भी नहीं है। यह मिलती है काव्य-साहित्य में । कवि का सत्य वास्तविक सत्य से भिन्न होता है। उसका सत्य कल्पना से जन्म लेता है। वह जितना कल्पना-कुशल होता है, उतना ही उसका सत्य निखार पाता है । इस घटना का पहला कल्पना-शिल्पी कौन है, यह निश्चय की भाषा में नहीं कहा जा सकता। विमल सूरि के 'पउमचरिउ', रविषण के 'पद्मपुराण' और हेमचन्द्र के 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' में इस घटना का उल्लेख है। जिस कवि ने इस घटना को महावीर के जीवन से जोड़ा, उसके मन में महावीर को कृष्ण से अधिक वलिष्ठ सिद्ध करने की कल्पना रही है। एक बार इन्द्र ने ग्वालों को कठिनाई में डाल दिया। उनकी सुरक्षा के लिए तरुण कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को हाथ से उठाया और सात दिन तक उसे उठाए रखा। भागवत का कृष्ण तरुण है । 'पउमचरिउ' का महावीर नव-जात शिशु है। गोवर्धन पर्वत एक योजन का है और मेरु पर्वत लाख योजन का। कृष्ण ने गोवर्धन को हाथ से उठाया और महावीर ने मेरु को पैर के अंगूठे से प्रकम्पित कर दिया। 'पउमचरिउ' की कल्पना भागवत की कल्पना से कम नहीं है। शरीर-बल के आधार पर कृष्ण महावीर से श्रेष्ठ नहीं हो सकते । २. कुमार वर्धमान माठ वर्ष के थे। वे एक दिन अपने साथी राजपुत्रों के साथ 'तिदुंसक' क्रीड़ा कर रहे थे। उस समय इन्द्र ने उनके पराक्रम की प्रशंसा की। एक देव परीक्षा करने के लिए वहां पहुंचा। वह बच्चे का रूप बना उनके
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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