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________________ धर्मपरिवर्तन : सम्मत और अनुमत २२७ वोद पिटकों में धर्म-परिवर्तन की अनेक घटनाएं उल्लिखित हैं। प्रेणिक भगवान् बुद्ध के पास जाकर उनका उपासक बन गया। अभयकुमार श्रेणिक का पुत्र था, अमात्य और सर्वतोमुखी प्रतिभा का धनी। वह भगवान् महावीर का उपासक था । भगवान बुद्ध के पास गया, थोड़ी धर्मचर्चा की और उनकी शरण में चला गया। उस युग में धर्म-परिवर्तन का क्रम चलता था, यह सुनिश्चित है। पर अभयकुमार के प्रसंगों को देखते हुए यह प्रतीति नहीं होती कि उसने धर्म-परिवर्तन किया। यह भगवान महावीर के पास दीक्षित हुआ और अन्त तक महावीर के शिप्यों में समादृत रहा। श्रेणिक अभयकुमार को दीक्षित होने की अनुमति नहीं दे रहा था। अभयकुमार वार-बार दीक्षा की अनुमति मांग रहा था। एक दिन श्रेणिक ने कहा-'जिस दिन मैं तुझे 'जा रे जा' कह दूं, उस दिन तू दीक्षा ले लेना।' एक दिन श्रेणिक सन्देह की कारा का बन्दी बन गया। अभयकुमार को राजप्रामाद जलाने की आशा देकर स्वयं भगवान् महावीर के पास चला गया। वहां सन्देह का धागा टूटा । वह तत्काल लौट आया । उसने दूर से ही देखी भाग की लपटें और धुआं। अभयकुमार मार्ग में मिला । श्रेणिक ने पूछा-'यह क्या ?' अभयकुमार ने कहा-'सम्राट् की आज्ञा का पालन ।' श्रेणिक वोला-'जा रे जा, यह क्या किया तूने ?' अभयकुमार की मांग पूरी हो गई। वह सम्राट की स्वीकृति ले भगवान् महावीर के पास दीक्षित हो गया।' श्रेणिक के और भी अनेक पुत्र भगवान् महावीर के पास दीक्षित हुए। उनमें मेघगुमार की घटना बहुत प्रसिद्ध है। श्रेणिक की अनेक रानियां भी भगवान् के संघ में दीक्षित हुई थी। उसके जीवन-प्रसंग इस ओर संकेत करते है कि जीवन के उत्तराखं में उसके धर्माचार्य भगवान् महावीर ही रहे। बिहार की पुण्य-भूमि उन दिनों धर्म-चेतना की जन्मस्पली बन रही थी। अनेक तीर्घकर और धर्माचार्य धर्म के रहस्यों को उद्घाटित कर रहे थे । एक सत्य अनेक वचनों द्वारा विकीर्ण हो रहा था। एक नालोक अनेक खिड़कियों से फूट रहा था। जनता के सामने समस्या थी। वह अनेक आकर्षणों के झूले में सल रही पी। १. बस रोपवायलाओ, ११५; बादापषि, उत्तरमाग१. १७१: कमी reो पानी। २. नरोदावसानो, ११९५ । | Rarent, दर ५.८ । दिम की दृष्ट रानिस प्रोपर महादार के. नाराम मार दारापोर पं में प्रति हु।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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