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________________ समन्वय की दिशा का उद्घाटन २१७ प्रत्येक धर्म अपने विरोधी धर्म से युक्त है। एक द्रव्य में अनन्त विरोधी युगल एक साथ रह रहे हैं । यह सिद्धान्त विभिन्न दृष्टियों के समन्वय से निष्पन्न नही हुआ है। किन्तु इस सिद्धान्त से समन्वय का दर्शन फलित हुआ है । समन्वय का सिद्धान्त मौलिक नहीं है । मौलिक है एक द्रव्य में अनन्त विरोधी युगलों का स्वीकार और प्रतिपादन । ___ सामान्य और विशेष-दोनों द्रव्य के धर्म हैं। इसलिए महावीर को समझने वाला सामान्यवादी वेदान्त और विशेषवादी वौद्ध का समर्थन या विरोध नहीं कर सकता। वह दोनों में समन्वय देखता है, संगति देखता है । जब हम पर्याय की ओर पीठ कर द्रव्य को देखते हैं तब हमें सामान्य केवल सामान्य, अद्वत केवल अद्वैत दिखाई देता है और जब हम द्रव्य की ओर पीठ कर पर्याय को देखते हैं तव हमें विशेप केवल विशेप, द्वैत केवल द्वैत दिखाई देता है । किन्तु महावीर को समझने वाला इस बात को नहीं भूलता कि कोई भी द्रव्य पर्याय से शून्य नहीं है और कोई भी पर्याय द्रव्य से शून्य नहीं है। केवल सामान्य या केवल विशेष को देखना दष्टि के कोण हैं, मर्यादाएं हैं। वास्तविकता के सागर में सामान्य और विशेष-दोनों एक साथ तैर रहे हैं। समन्वयवादी बाह्य और अंतरंग, स्थूल और सूक्ष्म, मूर्त और अमूर्त, दोनों के समन्वय-सूत्र को खोजकर वस्तु की समग्रता का वोध करता है। । क्या आज का महावीर का अनुयायी समाज समन्वयवादी है ? इस प्रश्न का उत्तर सिद्धान्त में नहीं खोजा जा सकता। यह खोजा जा सकता है चिंतन-भेद, घृणा अथवा व्यक्तिगत या साम्प्रदायिक महत्त्वाकांक्षा के धरातल पर। सव लोगों का और एक समाज में रहने वाले सब लोगों का भी चिंतन एक जैसा नहीं होता। जब तक उसका समीकरण होता रहता है तब तक वे साथ में रह पाते हैं और जब अहं की प्रबलता समीकरण नहीं होने देती तव चिंतन-भेद स्थिति-भेद में बदल जाता है । घृणा और महत्त्वाकांक्षा भी स्थिति-भेद उत्पन्न करती है। इन परिस्थितियों में बौद्धिक समन्वयवाद व्यवहार को प्रभावित नहीं करता। उसे प्रभावित करता है अहिंसक समन्वयवाद । भगवान् महावीर का समन्वय का सिद्धान्त वस्तु-जगत् में वौद्धिक है, प्राणी-जगत् में वह अहिंसक है। कितना कठिन है विचार और व्यवहार में सामंजस्य लाने वाले अहिंसक समन्वय की दिशा का उद्घाटन ?
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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