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________________ १९६ ___ श्रमण महावीर होना ही वास्तव में समता का होना है। .. १. मैत्री का आयामः कालसौकरिक' राजगृह का सबसे बड़ा कसाई था। उसके कसाईखाने में प्रतिदिन सैकड़ों भैसे मारे जाते थे। एक दिन सम्राट् श्रेणिक ने कहा, 'कालसौकरिक! तुम भैंसों को मारना छोड़ दो। मैं तुम्हें प्रचुर धन दूंगा।' ___कालसौकरिक को सम्राट् का प्रस्ताव पसन्द नहीं आया। भैसों को मारना अब उसका धन्धा ही नहीं रहा, वह एक संस्कार बन गया। उन्हें मारे बिना कालसीकरिक को दिन सूना-सूना-सा लगता । उसने सम्राट के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। सम्राट् ने इसे अपना अनादर मान कालसौकरिक को अन्धकूप में डलवा दिया। एक दिन-रात वहीं रखा। __ श्रेणिक ने भगवान् महावीर से निवेदन किया-'भंते! मैंने कालसौकरिक से भैसे मारने छुड़वा दिए हैं।' - 'श्रेणिक ! यह सम्भव नहीं है।' 'भंते ! वह अन्धकूप में पड़ा है । वह भैसों को कहां से मारेगा ?' 'उसका हृदय-परिवर्तन नहीं हुआ है, फिर वह अपने प्रगाढ़ संस्कार को दंडबल से कैसे छोड़ सकेगा ?' 'तो क्या भगवान् यह कहते हैं कि उसने अन्धकूप में भी भैंसों को मारा है ?' 'हां, मेरा आशय यही है।' "भंते ! यह कैसे सम्भव है ?' : ' 'क्या उस अन्धकूप में गीली मिट्टी नहीं है ?' . : .. 'वह है, भंते !' 'उस मिट्टी का भैसा नहीं बनाया जा सकता?' "मंते ! बनाया जा सकता है।' 'इसीलिए मैं कहता हूं कि कालसौकरिक दिन-भर भैसों को मारता रहा है।' सम्राट् इस सत्य को समझ गया कि दण्ड-बल से हिंसा नहीं छुड़ाई जा सकती। वह हृदय-परिवर्तन से ही छूटती है । सम्राट् ने अन्धकूप के पास जाकर मरे हुए भैंसों को देखा और देखा कि कालसौकरिक के क्रूर हाथ अब भी उन्हें मारने में लगे हुए हैं। सम्राट ने उसे मुक्त कर दिया। । कुछ वर्षों बाद कालसौकरिक मर गया। यह दुनिया वहत विचित्र है। इसमें कोई भी प्राणी अमर नहीं होता । एक दिन मारने वाला भी मर जाता है । लोगों ने सुना कि कालसौकरिक मर गया। परिवार के लोग आए और उसका दाह १. आवश्यक नि, उत्तरभाग, १० १६८ आदि ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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