SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सतत जागरण १९१ 'भंते ! अंधकार के परमाणु तैजस में बदल जाते हैं। कमरा प्रकाशमय बन जाता है।' 'वह कब तक प्रकाशमय रहता है ?' "भंते ! जब तक दीप जलता रहे।' 'एक पल के लिए भी दीप बुझ जाए तब क्या होता है ?' 'भंते ! तैजस के परमाणु अंधकार में बदल जाते हैं। कमरा अंधकारमय हो जाता है। 'क्या यह एक पल में ही घटित हो जाता है ?'' भंते ! दीप का वुझना और अंधकार का होना एक ही घटना है। इसमें अंतराल नहीं है। 'गौतम ! मैं यही कहता हूं कि जागरण का दीप जिस क्षण बुझता है, उसी क्षण चित्तभूमि में अंधकार छा जाता है।' 'भंते । जागरण के क्षण में क्या होता है ?' 'अंधकार प्रकाश में बदल जाता है ।' ' 'भंते ! क्या मनुष्य का कृत बदलता है ?' 'मनुष्य जागरण के क्षण में होता है तब चित्त आलोकित हो उठता है । साथसाथ पुण्य के संस्कार प्रबल होकर पाप के परमाणुओं को पुण्य में बदल डालते हैं। यह है पाप का पुण्य में संक्रमण । यह है कृत का परिवर्तन।' 'भंते ! प्रमाद के क्षण में क्या होता है ?' 'प्रमाद के क्षण में मनुष्य का चित्त अन्धकार से आच्छन्न हो जाता है। साथ-साथ पाप के संस्कार प्रबल होकर पुण्य के परमाणुओं को पाप में बदल डालते हैं । यह है पुण्य का पाप में संक्रमण । यह है कृत का परिवर्तन ।' 'भंते ! यह बहुत ही आश्चर्यकारी घटना है। यह कैसे सम्भव हो सकती है ? 'यह सम्भव है । इसी में हमारे पराक्रम की सार्थकता है। यह हमारे पुरुषार्थ की नियति है । इसे कोई टाल नहीं सकता। इसीलिए मैं कहता हूं-~अप्रमाद की ज्योति को अखण्ड रहने दो। ध्यान रखो, यह पलभर के लिए भी बुझ न पाए।'
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy