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________________ जीवनवृत्त : कुछ चित्र-कुछ रेखाएं नामकरण समय की सुई अविराम गति से घूम रही है। उसने हर प्राणी को पल-पल के संचय से सींचा है। गर्भ को जन्म, जन्म-प्राप्त को बालक, वालक को युवा, युवा को प्रौढ़, प्रौढ़ को वृद्ध और वृद्ध को मृत्यु की गोद में सुलाकर वह निष्काम कर्म का जीवित उदाहरण प्रस्तुत कर रही है । उसने त्रिशला के शिशु को बढ़ने का अवसर दिया। वह आज बारह दिन का हो रहा है । वह अभी अनाम है । जो इस दुनिया में आता है, वह अनाम ही आता है। पहली पीढ़ी के लोग पहचान के लिए उसमें नाम आरोपित करते हैं । जीव सूक्ष्म है। उसे पहचाना नहीं जा सकता। उसकी पहचान के दो माध्यम हैं-रूप और नाम । वह रूप को अव्यक्त जगत् से लेकर आता है और नाम व्यक्त जगत् में आने पर आरोपित होता है। माता-पिता ने आगंतुक अतिथियों और सम्बन्धियों से कहा, 'जिस दिन यह शिशु गर्भ में आया, उसी दिन हमारा राज्य धन-धान्य, सोना-चांदी, मणि-मुक्ता, कोश-कोष्ठागार, वल-वाहन से बढ़ा है, इसलिए हम चाहते हैं कि इस शिशु का नाम 'वर्द्धमान' रखा जाए। हम सोचते हैं, आप इस प्रस्ताव से अवश्य सहमत होंगे।' उपस्थित लोगों ने सिद्धार्थ और त्रिशला के प्रस्ताव का एक स्वर से समर्थन किया। शिशु का नाम वर्द्धमान हो गया। 'वर्द्धमान', 'सिद्धार्थ' और 'त्रिशला' के जयघोष के साथ नामकरण-संस्कार सम्पन्न हुआ। आमलकी क्रीड़ा __कुमार वर्द्धमान आठवें वर्ष में चल रहे थे। शरीर के अवयव विकास की दिशा खोज रहे थे। यौवन का क्षितिज अभी दूर था। फिर भी पराक्रम का वीज प्रस्फुटित हो गया। क्षात्र तेज का अभय साकार हो गया। एक बार वे बच्चों के साथ 'आमलकी' नामक खेल खेल रहे थे। यह खेल वक्ष को केन्द्र मानकर खेला जाता था। खेलनेवाले सव बच्चे वृक्ष की ओर दौड़ते। जो वच्चा सबसे पहले उस वृक्ष पर चढ़कर उतर आता वह विजेता माना जाता। विजेता वच्चा पराजित बच्चों के कंधों पर बैठकर दौड़ के प्रारम्भ विन्दु तक जाता। कुमार वर्द्धमान सबसे आगे दौड़ पीपल के पेड़ पर चढ़ गए। उनके साथ-साथ एक सांप भी चढ़ा और पेड़ के तने से लिपट गया । वच्चे डरकर भाग गए। कुमार वर्द्धमान डरे नहीं। वे झट से नीचे उतरे, उस सांप को पकड़कर एक और डाल दिया। १. पल्पसून, सूर ८५, ६६ २. बादायकपूण, पूर्वभाग, प० २४६ ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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