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________________ १६४ श्रमण महावीर कर दिया । चण्डप्रद्योत पराजित हो गया । उद्रायण ने उसे बंदी बना सिन्धु-सौवीर की ओर प्रस्थान कर दिया । मार्ग में भारी वर्षा हुई। उद्रायण ने दसपुर में पड़ाव किया। वहां सांवत्सरिक पर्व आया। उद्रायण ने वार्षिक सिंहावलोकन कर चण्डप्रद्योत से कहा-'इस महान् पर्व के अवसर पर मैं आपको क्षमा करता हूं। आप मुझे क्षमा करें।' चण्डप्रद्योत ने कहा-'क्षमा करना और बंदी बनाए रखनाये दोनों एक साथ कैसे हो सकते हैं ? आप बंदी से क्षमा करने की आशा कैसे करते हैं ? भगवान् महावीर ने मैनी के मुक्त क्षेत्र का निरूपण किया है। उसमें न बंदी बनने का अवकाश है और न बंदी बनाने का। फिर महाराज ! आप किस भाव से मुझे क्षमा करते हैं और मुझसे क्षमा चाहते हैं ?' ___उद्रायण को अपने प्रमाद का अनुभव हुआ। उसने चण्डप्रद्योत को मुक्त कर मैत्री के बंधन से बांध लिया। दोनों परम मित्र बन गए। भगवान् ने अनाक्रमण के दो आयाम प्रस्तुत किए-~आन्तरिक और बाहर । उसका आन्तरिक आयाम था-मैत्री का विकास और बाहरी आयाम थानिःशस्त्रीकरण। निःशस्त्रीकरण की आधार-भित्तियां तीन थीं१. शस्त्रों का अव्यापार । २. शस्त्रों का अवितरण । ३. शस्त्रों का अल्पीकरण । आक्रमण के पीछे आकांक्षा या आवेश के भाव होते हैं। वे मनुष्य को मनुष्य का शत्रु बनाते हैं । शत्रुता का भाव जैसे ही हृदय पर अपना प्रभुत्व स्थापित करता है, वैसे ही भीतर बह रहा प्रेम का स्रोत सूख जाता है । मन सिकुड़ जाता है। बुद्धि रूखी-रूखी-सी हो जाती है । मनुष्य क्रूर और दमनकारी बन जाता है । यह हमारी दुनिया की बहुत पुरानी बीमारी है। इसकी चिकित्सा का एकमात्र विकल्प हैसमत्व की अनुभूति का विकास, मैत्री की भावना का विकास । इस चिकित्सा के महान् प्रयोक्ता थे भगवान् महावीर । उनका अनाक्रमण का सिद्धान्त आज भी मानव की मृदु और संयत भावनाओं का प्रतिनिधित्व कर रहा है । १०. असंग्रह का आन्दोलन शरीर और भूख-~-दोनों एक साथ चलते हैं। इसलिए प्रत्येक शरीरधारी जीव भूख को शान्त करने के लिए कुछ न कुछ ग्रहण करता है। बहुत सारे अल्पविकसित जीव भूख लगने पर भोजन की खोज में निकलते हैं और कुछ मिल जाने पर खा-पी संतुष्ट हो जाते हैं । वे संग्रह नहीं करते। कुछ जीव थोड़ा-बहुत संग्रह १. उत्तराध्ययन, सुखबोधा, पन २५४ ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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