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________________ क्रान्ति का सिंहनाद १५१ कहता हूं।' गौतम ने फिर पूछा-'भंते ! क्या ऐसा हो सकता है?-- १. कण्ट महान् और शुद्धि भी महान्, २. कण्ट महान् और शुद्धि अल्प, ३. कष्ट अल्प और शुद्धि महान्, ४. कप्ट अल्प और शुद्धि भी अल्प । भगवान् ने कहा-'हो सकता है।' गौतम ने पूछा-'कैसे हो सकता है, भंते ?' भगवान ने कहा १. उच्च भूमिका का तपस्वी महान् कष्ट को सहता है और उसकी शुद्धि भी महान होती है। २. नारकीय जीव महान् कष्ट को सहता है, पर उसके शुद्धि अल्प होती है । ३. उच्च भूमिका का ध्यानी अल्प कष्ट को सहता है, पर उसके शुद्धि महान् __ होती है। ४. सर्वोच्च देव अल्प कष्ट को सहता है और उसके शुद्धि भी अल्प होती है।" भगवान् ने कष्ट-सहन और शुद्धि के अनुबंध का प्रतिपादन नहीं किया। भगवान् ने गौतम के एक प्रश्न के उत्तर में कहा था-कष्ट के अधिक या अल्प होने का मेरी दृष्टि में कोई मूल्य नहीं है। मेरी दृष्टि में मूल्य है प्रशस्त शुद्धि का। गौतम ने इस विषय को और अधिक स्पष्ट करने का अनुरोध किया। तब भगवान् ने कहा 'गौतम ! दो वस्त्र हैं- एक कर्दमराग से रक्त और दूसरा खंजनराग से रक्त । इनमें से कौन-सा वस्त्र कठिनाई से साफ किया जा सकता है और कौन-सा सरलता से ?' "भंते ! कर्दमराग से रक्त वस्त्र कठिनाई से साफ होता है।' 'गौतम ! नारकीय जीव के बन्धन बहुत प्रगाढ़ होते है, इसलिए महान कष्ट सहने पर भी उनके शुद्धि अल्प होती है।' 'भंते ! खंजन राग से रक्त वस्त्र सरलता से साफ होता है।' 'गौतम ! तपस्वी मुनि के बंधन शिथिल होते हैं, इसलिए उनके पवित्र कष्ट सहने से ही महान् शुद्धि हो जाती है।' ___'यह कैसे होती है, भंते ?' १. भगवई, ६।१५, १६॥ २. भगवई, ६१: से मेए रे पगत्पनिम्जराए ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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