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________________ अनी मामायनीकान मामालका को मेरी बात पर विश्वास नही हा । व उनके पाया। अगरी पानी को तोड़कर देना। उममें गात ही निल नियन। नारा गया। उसने नाचयं के नाम पूछा-मंते ! यह गोगेला ? मामा'म का पौधे को उमापार मा गए। पोड़ी देर के बाद बार गाय या । उसका गर उस पर पड़ा । यह जमीन में गड़ गया।' गांमानक के मन में नियति का बीज अंकुरित हो गया। उसने फिरवरी माया गोगा--'जोहोने का होता है, वह होकर ही रहता है। मधु के उपरान ममी अपनी ही योनि में उत्पन्न होते है ।" गौतम बड़ी तन्मयता में भगवान की बात सुन । उनीविर नया शो गहना लगा पहंच रही थी । वे भगवान् प्रदेश वचन मोवीनदमना गया है। ये अतृप्त जिजामा को मान्त मारने के लिए दोन-ने ! लागते गोमालया गो गायिन के रहस्य मिगलाए, उम विषय ने गुर गुनना चाहता।' भगवान् ने गहना प्रारम्भ किया-एक बार हम लोग जामदाम में विकास कार । यहां पंण्यायन नाम का तपस्वी तपस्या कर रहा था। मध्याकाम। सानो काप ऊपर की ओर तने हुए थे। ली जटा । नृवं में सामने दृष्टिी जगी महा। उनकी जटा में जूएं गिर नही थी। वह उन्हें उठाकर पुनः अपनी दा में पा। यह देग गोनानक ने मतने पूछा-नेपाली भारपदासागोन है ?' उसने इस प्राण कोपा बार दोहरामा पानी पदागिने गोमानक को जलाने के लिए तेजीनधि नामक योगाविसमा Fral 1 उगम पुलां निकलने लगा। उस पो भाग भी जारी गोपी। उस समय मैंने अपने शिष्य को भस्म होने देना उचित नही । मोका जालधि का प्रयोग बार उसे हतप्रभ कर दिया । जोहानगर पटना का उन मन पर बहुत अमर हुआ। नगर लिए लातुनो गया । मैंने उनका नाम गोगानय शोला दिन में मेजोनहिरा की माधना पो । दर में प्राप्त भ यो ही गौतम रामत ! बा में दान ममता ने मोलमोजिन पर माममा निरन्तर दो-दो बार ) सोला सामना है, मुझ में नाम : (8 '. R REE
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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