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________________ १०० श्रमण महावीर जीव एक नहीं हैं । ये दोनों भिन्न हैं, एक अचेतन और दूसरा चेतन।' "भंते ! क्या इस विषय का साक्षात् किया जा सकता है ?' 'निश्चित ही किया जा सकता है।' 'क्या यह मेरे लिए भी संभव है ?' 'उन सबके लिए संभव है जो आत्मवादी हैं और आत्मा के शक्ति-स्रोतों को विकसित करना जानते हैं।' वायुभूति के मन में एक प्रबल प्यास जाग गई। वे आत्म-साक्षात्कार करने के लिए अधीर हो उठे। उन्होंने उसी समय भगवान् से आत्मवाद की दीक्षा स्वीकार कर ली। भगवान् का परिवार कुछ ही घंटों में बड़ा हो गया। वर्षों तक वे अकेले रहे। आज पन्द्रह सौ शिष्य उन्हें घेरे बैठे हैं और दरवाजा अभी बन्द नहीं है। ___ यज्ञशाला में एक विचित्र स्थिति निर्मित हो गई। उसके आयोजक चिता में डूब गए। यज्ञ की असफलता उनके चेहरे पर झलकने लगी। सर्वत्र उदासी का वातावरण छा गया। आयोजक वर्ग ने अन्य विद्वानों को श्रमणनेता के पास जाने से रोकने के प्रयत्न शुरू कर दिए। पैसे के पास पैसा जाता है। धनात्मक शक्ति ऋणात्मक शक्ति को अपनी ओर खींच लेती है। महावीर ने शेप विद्वानों को इस प्रकार खींचा कि वे वहां जाने से रुक नहीं सके। एक-एक विद्वान् आते गए और भगवान् से संबोधन और अपनी धारणा में संशोधन पाकर दीक्षित होते गए। उनकी धारणाएं थीं व्यक्त-पंचभूत का अस्तित्व नहीं है। सुधर्मा-प्राणी मृत्यु के बाद अपनी ही योनि में उत्पन्न होता है। मंडित-बंध और मोक्ष नहीं है। मौर्ययुद्र-स्वर्ग नहीं है। अंफपित-नरक नहीं है। अचलभ्राता-पुण्य और पाप पृथक नहीं हैं। मेतार्य-पुनर्जन्म नहीं है। प्रभाग-मोक्ष नहीं है। भगवान् ने परिषद् के सम्मुख धर्म की व्याख्या की। उनके दो अंग थेअहिना और ममता । भगवान् ने कहा, 'विषमता से अहिंसा और हिंसा से व्यक्ति के चरित्र का पतन होता है। व्यक्ति-व्यक्ति के चरित्र-पतन से सामाजिक चरित्न रापन होता है। इस पतन को रोकने के लिए अहिंसा और उसकी प्रतिष्ठा के १. सायनानिति गाया ६४४-६६०; आवश्यकणि, पूर्व माग, पृ० ३३४.३३६ ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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