SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८९ नारी का बन्धविमोचन 'तपस्या होती तो वे भिक्षा के लिए नहीं निकलते । वे प्रतिदिन अनेक घरों में जाते हैं, किन्तु कुछ लिये बिना ही वापस चले आते हैं ।' 'हमारे गुप्तचरों ने यह सूचना कैसे नहीं दी ?' अमात्य ने भृकुटी तानते हुए कहा, 'और मैं सोचता हूं कि महाराज शतानीक को भी इसका पता नहीं है और मेरा खयाल है कि महारानी मृगावती भी इस घटना से परिचित नहीं हैं । मैं अवश्य ही इस घटना के कारण का पता लगाऊंगा ।' 1 प्रतिहारी विजया महारानी के कक्ष में उपस्थित हो गई। महारानी ने उसकी भावभंगिमा देख उसकी उपस्थिति का कारण पूछा। वह बोली, 'देवि ! मैं नंदा के घर पर एक महत्त्वपूर्ण बात सुनकर आई हूं। क्या आप उसे जानना चाहेंगी ?' 'उसका किससे सम्बन्ध है ?' 'भगवान् महावीर से ।' 'तव अवश्य सुनना चाहूंगी।' विजया ने नंदा के घर पर जो सुना वह सब कुछ सुना दिया। महारानी का मन पीड़ा से संकुल हो गया । कुछ देर बाद महाराज अन्तःपुर में आए और वे भी महारानी की पीड़ा के संभागी हो गए । महाराज शतानीक और अमात्य सुगुप्त ने इस विषय पर मंत्रणा की । उन्होंने उपाध्याय तथ्यवादी को बुलाया । वह बहुत बड़ा धर्मशास्त्री और ज्ञानी था । महाराज ने उसके सामने समस्या प्रस्तुत की । पर वह कोई समाधान नहीं दे सका। महाराज खिन्न हो गए । उन्होंने उद्धत स्वर में कहा, 'अमात्यवर ! मुझे लगता है कि हमारा गुप्तचर विभाग निकम्मा हो गया है। मैं जानना चाहता हूं, इसका उत्तरदायी कौन है ? क्या मेरा अमात्य इतनी बड़ी घटना की जानकारी नहीं दे पाता ? क्या मेरा अधिकारी वर्ग इतना भी नहीं जानता कि महारानी महाश्रमण पार्श्वनाथ की शिष्या हैं ? क्या वह नहीं जानता कि भगवान् महावीर महारानी के ज्ञाति हैं ? भगवान् हमारी राजधानी में विहार करें और उन्हें श्रमणोचित भोजन न मिले, यह सचमुच हमारे राज्य का दुर्भाग्य है। अमात्यवर ! तुम शीघ्रातिशीघ्र ऐसी व्यवस्था करो जिससे भगवान् भोजन स्वीकार करें ।' अमात्य भगवान् के चरणों में उपस्थित हो गया। उसने महाराज, महारानी, अपनी पत्नी और समूचे नगर की हार्दिक भावना भगवान् के सामने प्रस्तुत की और भोजन स्वीकार करने का विनम्र अनुरोध किया । किन्तु भगवान् का मौनभंग नहीं हुआ । अमात्य निराश हो अपने घर लौट आया । 'भगवान् की चर्या उसी क्रम से चलती रही । प्रतिदिन घरों में जाना और कुछ लिये दिना वापस चले आना । लोग हैरान थे। समूचे नगर में इस बात को चर्चा फैन गई। पांचवां महीना पूरा का पूरा उपवान में बीत गया । छठे महीने के पचीस दिन चले गए ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy