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________________ ( ६ ) कारण उसमें फंस कर पतन करजाया करता है, खकार मे पड़ी हुई मक्खी के समान । किन्तु सम्यग्दृष्टि जीव अपने सन्मनीभाव से अगर गृहस्थपन में भी होता है तो कालक्षेप जरूर करता है फिर भी फंस नही रहता है बीच की स्टेशन के उपर खड़ी हो रहने वाली गाड़ीके समान । किन्तु जनसेवा का भाव लिये हुये सत्ता स्वीकार करता है सो बताते हैंनतुङ्ममार्यं कुविधामनुस्यादेके तिबुद्धयासुतमत्रपुण्यात् । परा तु तं मोदकरं विचार्याऽभिसन्निदध्यादिदमाहुरार्या: ४० " ― अर्थात् - यहां कर्मफल चेतना और कर्म चेतनारूप अज्ञान चेतनाका प्रकरण चला आरहा है सो वह दो प्रकारकी होती है एक शरीराश्रित दूसरी आत्माश्रित । सो शरीराश्रित अज्ञान चेतना तो मिध्यादृष्टिकी होती है और आत्माश्रित अज्ञानचेतना सराग सम्यग्दृष्टि की। जैसे माता अपने बच्चे का पालन पोषण करती है तो उसका पालन करना माता का कार्य यानी कर्म हुवा और उसके पालन करने के बारे की जो बुद्धि-विचारविशेष उसका नाम चेतना, वह उसकी दो प्रकार से होती है। एक तो यह कि यह बच्चा बड़ा खूबसूरत है बड़ा सुहावना है मुझे बड़ा प्यारा लगता है इस प्रकार के विचार को लेकर उसका पालन करना सो यह तो शरीराश्रित कर्मचेतना हुई क्यों कि इसमें उस बच्चे की आत्मा के हिताहित पर कोई विचार न होकर उसके शरीर की ओर का ही विचार होता है । वह जिस प्रकार हृष्ट पुष्ट '
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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