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________________ ( ८५ ) राम के साधन जुटाता है वह अपनी जिन्दगी अच्छी तरह से बिता सकता है । किन्तु मैना को समझाया गया था कि माता पिता पति पत्नी भाई बन्धु बगेरह का जो कुछ सयोग होता है वह इसीके पूर्वोपार्जित कर्मानुसार हुवा करता है । अतः उसमें उद्विम न हो कर उनकी यथासाध्य सेवा करते हुये अपने कर्तव्य का पालन करते रहना चाहिये और परमपरमात्मा का स्मरण करते हुये अपने उपयोग को निर्मल बनाना चाहिये ताकि आगे के लिय सब ठीक होता चला जावे इत्यादि । सो ' सुरसुन्दरी ने तो अपने विचारानुसार किसी एक बड़ेभारी राजकुमार को अपने आप पति निर्वाचित करके उसके साथ विवाह किया किन्तु मैना का सम्बन्ध श्रीपाल कोढी के साथमे किया गया । अव दोनों ही अपने २ पति को अपना २ पति समझती हैं फिर भी दोनों के विचार मे बड़ा अन्तर है। सुरसुन्दरी तो उसको अपने लिये सुखका साधन समझ कर उसके साथ आराम भोगने लगी और उसमे इतनी अन्धी हुई कि अपने धर्म कर्तव्य से शून्य हो जाने के कारण एक दिन उसे भिखारिन बनना पड़ा । परन्तु मैना अपने आपको कष्ट मे डाल कर भी पतिकी सेवा करना अपना कर्तव्य मानती हुई अपने अन्तरंग में भगवान का स्मरण रखते हुये विशुद्ध भाव से उसकी सेवा करने लगी ताकि अन्तमें इस दुनियां के लोगों के लिये आदर्श बन गई । मतलब यह कि गृहस्थता के नाते, एकसा होकर भी मिध्यादृष्टि जीव अपनी उलटी समझ के
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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