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________________ ( ५३ ) - जारहा है कि रावण बड़ा दुष्ट है, हम उसे मारे बिना नहीं छोडेगे परन्तु श्री रामचन्द्र बोलते हैं कि नही, रावण से हमारा क्या विरोध है, रावण तो हमारे बड़ों में से है, हमें तो हमारी सीता राणी से प्रयोजन है । रावण जब बहुरूपिणी विद्या सिद्ध करने लगा तो सुग्रीवादि समी घबराये कि उसे अगर बहुरूपिणी विद्या सिद्ध होगई तो फिर वह किसी से भी नही जीता जाने का, उसके ध्यान में विघ्न डालदेना चाहिये । इस पर श्री रामचन्द्र तो अपनी सहज गम्भीरतासे जबाब देते हैं कि इस समय जव कि वह धर्माराधना में लगा हुवा है वो उस पर उपद्रव मचाना ठीक नहीं है, भलेही हमारी सीता हमे न मिले इत्यादि । मगर फिर भी लक्ष्मण उठता है और गुप्तरूप से इसारा करके रावण के प्रति विन्न करने के लिये अंगदादि को भेज देता है। इसी प्रकार सीता की बुराई बतलाने के लिये अयोध्या के लोग जब आये हैं तो लक्ष्मण तो क्रोध करके उन्हें मारने को तैयार हो जाते हैं किन्तु श्रीराम उनकी बातको ध्यान से सुन कर उन्हे छाती से लगा लेते हैं और सीता को निकाल ही देते हैं । एवं एकसा राज्य भोग करते हुये भी आत्मपरिणति की विशेषता से ही लक्ष्मण वो आज भी पाताल का राज्य कर रहे हैं किन्तु श्रीरामचन्द्र अन्तमें कर्म काट कर मोक्ष प्राप्त कर गये हैं । यही हाल कौरव और पाण्डवों का था दोनों राज्य के हामी थे, दोनों परस्पर युद्ध में जुटे हुये थे फिर भी एक बुराई के रास्ते पर था वो दूसरा भलाई की ओर
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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