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________________ ( ८२ ) सुभौम अपने राज्य को अपने बाहुवों के बल से प्राप्त किया हुवा और बहुत बड़ी चीज मान रहा था, धर्मको ढकोसला समझ रहा था एवं भोगविलास में मग्न था इसी लिये अन्तमे एक आम के फल के स्वादमं पड़कर हड़काये हुये कुत्त े की भांति बेढङ्गपन से मारा जाकर नरक में पड़ा । बस इस प्रकार मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि के विचार में भेद होता है बल्कि भोगों को भोगते समय में भी दोनों की चेष्टा में बहुत कुछ भिन्नता होती है उसीको नीचे उदाहरण से स्पष्ट करते हैंनाक्ति भोगान्नम स लक्ष्मणथरामश्च क्रिन्त्वन्तर मप्युश्चत् युद्ध' पुनः पाण्डव कौरवाम्याँमिथः कृतेऽप्यन्तरमेवताभ्यां ३८ अर्थात- एक राज्य वैभव के भोगने वाले राम और लक्ष्मण इन दोनों भाइयों में भी परस्पर में आत्मपरिणामों में बहुत कुछ अन्तर रहा है। देखो कि जब केकई के कहने से दशरथ महाराज अयोध्या का राज्य भरत को देने लगे तो इस पर क्रोध में आकर लक्ष्मण तो धनुप तान करके दिखाने के लिये खड़े हो जाते हैं मगर श्री रामचन्द्र अपनी सरलता दिखलाते हुवे उसे ऐसा करने से रोक रहे हैं कि नही भैय्या तुम लड़कपन मत दिखलावो हमें ऐसा करना उचित नहीं । वल्कि माता केकई के चरणों मस्तक रखना और पिता जी की आज्ञानुसार अयोध्या को छोड़ कर चल ही देना चाहिये । रावण से प्रतिद्वन्द्विता करते समय भी लक्ष्मण तो यह कहता
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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