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________________ ( 5 ) + और भुकना इसी का नाम तो यत्न है जैसा कि मैंना ने किया। था। प्रत्युत निमित्तानुसार परिणमन करके कार्यों को पुष्ट ... करना तो कायरता है जैसा कि अज्ञानी जीव किया करता है। यही दो संसारी जीव और मुक्तिमार्गी जीवमें परस्पर विशेषता .. होती है । कीचड़में पड़कर लोहा जङ्ग पकड़ जाया करताहै,मगर सोना वैसा नही होता वह भले ही 'जब तक उसमें पड़ा है उससे लिपा हुवा रहता है फिर जहां उसे जरासा पानी से धोया कि माफ सुथरा हो लेता है । वस तो वैसे ही सम्यग्दृष्टि जीव भी जब तक गृहस्थ होता है या कपायवान् है तब तक कर्म और कर्मफलरूप अज्ञान चेतनामयी चेष्टावाला होता है फिर भी मिथ्याप्टि की अपेक्षा से उसमें बहुत कुछ अन्तर होता है सो ही नीचे स्पष्ट करते हैं एतस्य वाड्यात्मवतोऽपिचेतः कर्मण्यथोकर्मफलेतृ चेतः । तथापिरामस्यचरावणस्ये, बबुद्धिमानन्तरमाशुपश्येत् ॥३६॥ अर्थात्- यद्यपि उदय में आये हुये कर्म के फल को मिथ्यादृष्टि की तरह से सम्यग्दृष्टि भी भोगता है तथा अपने कपायांश के अनुसार पापके फल को बुरा और पुण्य के फलको अच्छा भी समझता है अतः जब तक गृहस्थावस्था में होता है वव तक पाप के फल से बच कर पुण्यफल को बनाये रखने की यथा साध्य बुद्धिपूर्वक चेष्टा भी करता है फिर भी इन दोनों की चेप्टा में पशु और मनुष्य का सा अन्तर होता है।
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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