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________________ ( ७७ ) - चेष्टा से भी उसको पुष्ट करने की कोशिश करता है । इस बात के समझने के लिये हमें मैंनासुन्दरी को याद करना चाहिये । मैना से जब उसके पिता ने कहा कि बेटी मैना, तेरी बड़ी बहन सुरसुन्दरी के समान तू भी तेरे पति को निगाह करले तू कहेगी उसी महाराज कुमार के साथ में मै तेरी शादी करदूंगा। इस पर पिता को पिता मानते हुये मैना ने कहा कि पिता जी यह मेरा काम नहीं है यह तो आपका कार्य है आप जिसके भी साथ में उचित समझे मेरी शादी कर । इस पर पिता ययपि नाराज हुवा और बोला कि देख तू अपने 'पति को अपने आप हूँढ ले नहीं तो इसमें अच्छा नही, किन्तु तेरा बहुत बुरा हो जावेगा इत्यादि । किन्तु मैना तो अपनी श्रद्धा को अटल किये हुये थी कि मेरे पूर्वोपार्जित कर्म के अनुसार जिस किसी के साथ में मेरा सम्बन्ध होना है वही तो होगा इसमें कोई क्या कर सकता है । तो फिर मै क्यों व्यर्थ ही निर्लन वनू और क्यो कायरों की श्रेणी में अपना नाम लिखाने का काम करू। शङ्का-तो क्या अपने भले के लिये प्रयत्न करना कायरता है ? यल्कि वह तो पुरुषार्थ है । उत्तर - आप कौन और उसका भला क्या करना ? आप तो हैं आल्मा जिसका कि भला वीतरागता में होता है सो कपायोदय का निमित्त उपस्थित होने पर भी उसको अपने उपयोग में न लाकर वीतरागता अर्थात्- मन्दकदायिता को
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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