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________________ ( १ ) - कहा जाता है । अस्तु । इस प्रकार आत्म-प्रयत्न से मिथ्यात्व को दवा कर सम्यक्त्व प्राप्त किया जाता है वहां कितनी देरतक रहता है और उसका क्या नाम है सो बताते है-- सम्यक्त्वमेतत्प्रथमोपशाम, मन्तमुहूर्तावधिभातिनाम । पश्चातुमिथ्यात्वसुनियद्वाप्राप्तिश्चसम्यक्प्रकृतेरियवाक् ॥३१॥ अर्थात्-मिथ्यादृष्टि से सम्यग्दृष्टि बनने वाले दो प्रकार के जीव होते हैं एक अनादि, दूसरा सादि । सो अनादि मिथ्या प्टि जीव एक दर्शन-मोहनीय और चार अनन्तानुचन्धि कपाय इन पांच प्रकृतियों का उपशम करके उन्हें दवाकर सम्यग्दर्शन प्राम करता है जो कि सम्यग्दर्शन एक अन्तमुहूर्त मात्र काल तक रहता है परन्तु इस अन्तमुहूर्त मान सम्यक्त्वकाल में वह जीव अपने आत्म-परिणामों द्वारा सन्चा में रहने वाले उस मिथ्यादर्शन कर्मके तीन टुकड़े करलेता है । दर्शनमोह, मिश्रमोह और सम्यक् प्रकृति मोह कर्म । अब सम्यग्दर्शन का काल ममाप्त होते ही अगर मिथ्यात्व का उदय आया तो वापिस मिथ्या दृष्टि बन जाता है फिर जव कमी सम्यग्दृष्टि बनता है तो यह सादि मिण्याइष्टि जीव अपनी तीन तो दर्शनमोह की और चार अनन्तानुवन्धि कपाय इन सात प्रकृतियों का उपशम करने से सम्यग्दृष्टि हो पाता है। इस प्रकार मिथ्याष्टिसे जोसम्यग्दृष्टि बनता है उसके सम्यग्दर्शन को प्रथमोपशम सम्यक्त्व कहते हैं । हां इस प्रथमोपशम
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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