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________________ ( ४८ ) उदय होगा वहां जीव मे राग द्वेष अवश्य पैदा करेगा और राग द्वेषहांगे, वे आगामी कर्म बन्ध जरूर करगे बीज से वृक्ष और वृक्ष से फिर बीज इस प्रकार संन्तान चलती ही रहेगी उसका कभी अभाव नही होगा । यही बात प्राचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामीजी - अरोराणिमित्तं यदुपरिणामं जागदोद्ध पि इस गाथा में बतलाये है मतलब यह कि स्वामी जी अपने इस वाक्य द्वारा - निमित्च करण की प्रबलता स्पष्ट कर दिखला गये है । और बतला गये हैं कि निमित्त 'न हो तो कार्य नही होता, निमित्त के द्वारा ही कार्य होता है । सम्यग्दर्शन होते ही ज्ञान और चरित्र अपने मिध्यापन को त्याग कर सम्यक् बन जाते हैं तथा सम्यग्दर्शन नष्ट होते ही वे दोनो वापिस मिथ्या हो जाते है। ऐसा हमारे सभी आचार्यों ने बतलाया है यह निमित्त की ही तो महिमा है। फिर भी कुछ लोग - निमित्त न हो तो कार्य नही होना ऐसा मानमा मिथ्या है इस प्रकार कह कर लोगों को चक्कर में डालना चाहते है यह कितना बड़ा दुःसाहस है, हम नहीं कह सकते । हम देखते हैं कि अन्धेरी कोठरी में दीपक जलते ही प्रकाश हो जाता है और उसके बुझते ही वापिस अन्धेरा का अन्धेरा हो रहता है इसी लिये तो अन्धेरे में काम न कर सकने वाला आदमी दीपक जला कर अपना काम करता है वह जानता है कि यहां पर दीपक के बिना अन्धेरा नही मिट सकता सो क्या यह गलत बात है, बलिहारी हो इसे मिथ्या बताने वालों की | छत्ता तागते
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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