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________________ ( ४७ ) दोखी हैं एक सुमति और दुर्मति । सुमति कहती है कि आप सुलफा गांजा पीते हो सो अच्छा नही है वह कलेजे को जलाता है और बुद्धि को बिगाड़ता है अगर इसके बदले मे आप दूध पीया करो तो अच्छा हो इत्यादि, तो उसके कहने को वह सुना अनसुना करदेता है तथा उस स्त्री से दूर रहने की भी शोचता है। दूसरी बोलती है कि आदमी को नसा करना और मस्त " रहना चाहिये, जो किसी भी तरह का नशा नहीं करता वह आदमी ही क्या इत्यादि, तो उसके इस कहने को वह मन लगा कर सुनता है एवं उस स्त्री को ही भली भी समझता है । इसका कारण यही कि उस आदमी की मानसिकवृत्ति नसे की ओर की हुई है। इसका कोई क्या करे यह तो उसीके विचार का कार्य है | अगर वह चाहे तो सुमति के कहने को दिल से ठोल सकता है कि ठीक तो है। दूध पीनेवाले लोग सब भले और चंगे हैं मगर मेरेपास आने वाले मेरे यार-दोस्त गंजेड़ी भंगेड़ीलोग चातून और श्रातताई बगेरह हैं। ऐसा शोचे तो वह आगे के लिये नशा करना छोड़ सकता है या उसे कम तो जरूर ही कर देता है वैसी ही इस संसारी जीव की बात है । अगर यह चाहे तो सन्तों की बात पर गम्भीरता से विचार कर, उसे हृदयमें धारण करले ताकि उत्तर कालमें उदय आने वाले मोहनीय कर्म को कमसेकम एक अन्तर्मुहूर्त के लिये दबादे, उदय में न आने दे, उसे सफल न होने देवे तो राग द्वेष रहित हो कर कर्मबन्धन की श्रृंखला को तोड़ सकता है । अन्यथा तो फिर जहां कर्म का •
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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