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________________ (३४ ) उसने अपराध किया है, इस लिये दब्यू बना हुवा है हर तरह से और हर तरफ से वह चौकन्ना रहता है, डरता रहता है कि कोई मुझे देख न लेवे इत्यादि वैसे हो यह संसारी आत्मा परपदार्थों में मोह राग द्वष किये हुये है सो इसका यह अपराध ही इसके लिये बन्ध का कारण बन रहा है ताकि तीन लोक का प्रभु होते हुये भी दब्यूबन कर भयालु होते हुये बन्धन मे बन्धा हुवा है जो कि बन्ध चार प्रकार का माना गया हुवा है सो नीचे बताते हैंस्थित्यानुभागेन पुनः प्रकृत्या प्रदेशतरतूर्यविधोविमत्या। वन्थःसचैतस्यसमशिरूपेयतोऽसकौसम्पतितोऽककूपे । १७॥ अर्थात्-हरेक ही कैदी मुख्यरूप में चार तरह से विवश होकर रहता है। उसके हाथ पैरों मे हथकड़ी और बेड़ी होती हैं । उससे चक्की पिसाई जाती है या दुरी बुनवाई जाती है या सड़क कुटवाई जाती है इत्यादि २ । उमर कैद बगैरह के रूपमें उसे लिया जाता है ३ और अन्धेरी कोठरी या उजाली कोटरी तथा कालापानी आदि बोल कर उसे कैद किया जाया करता है। वैसे ही इस संसारी आत्मा के भी हरेक प्रदेश पर कर्मपरमाणुवोंका बोम आकर पड़ता है जिससे कि यह हथकड़ी वेड़ियों की तरह जकड़ा जाता है और जिसे प्रदेश बन्ध कहा गया हुवा है १ वह आठ तरह की प्रकृति यानी स्वभाववाला होता है-ज्ञानावरण (जो ज्ञान को न होने दे) दर्शनावरण
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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