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________________ वाल-सूत्र ११७ ( २११ ) जो मनुष्य अपने जीवन को अनियत्रित (उच्छवल) रखने के कारण यहां समाधि-योग से भ्रष्ट हो जाते है, वे काम-भोगो में आसक्त होकर अन्त में असुरयोनि में उत्पन्न होते है। ( २१२ ) सतार में जितने भी अविद्वान् (मूर्ख) पुरुष है, वे सब दुख भोगनेवाले है। मूढ प्राणी अनन्त ससार में बार-बार लुप्त होते रहते है-जन्मते और मरते रहते हैं। (२१३ ) मूर्स जीवो का अकाम मरण ससार मे बार-बार हुआ करता है। परन्तु पडित पुरुषों का सकाम मरण केवल एक वार ही होता हैवै पुनर्जन्म नही पाते। ( २१४ ) मूर्ख मनुष्य की मूर्सता तो देखो, जो धर्म को छोडकर, अधर्म को स्वीकार कर अमिप्ठ हो जाता है, और अन्त में नरक-गति को प्राप्त होता है। ( २१५ ) सत्य-धर्म के अनुगामी धीर पुरुष की धीरता देखो, जो अधर्म का परित्याग कर धर्मिष्ठ हो जाता है, और अन्त में देवलोक मे उत्पन्न होता है।
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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