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________________ ( २३ । योग्य स्थूलता में कभी नहीं पाता क्योंकि इसके साथ में लगे हुये कर्मस्कन्ध भी सूक्ष्म ही होते हैं। अस्तु । अब छहों द्रव्यों की अपनी अपनी संख्या क्या है सो बताते हैंधर्मोऽप्यधर्मोनम एकमेव कालाणवोऽसंख्यतयासुदेवः भो पाठका ज्ञानघरा अनन्ता दृश्याणवोऽनन्वतयाप्यनन्ताः अर्थात्-गमनशील जीव और पुद्गल को मछली को जल की भांति गमन करने में सहायक हो उसे धर्म द्रव्य कहते हैं यह एक है और असंख्यात प्रदेशी है और तमामलोका काश में फैला हुवा है । स्थानशील जीव और पुद्गल को जो ठहरने में सहायक हो जैसे कि पथिक को छाया अथवा रेलगाड़ी को स्टेशन सो वह अधर्म द्रव्य है यह भी एक द्रव्य है असंख्यात प्रदेशी है और तमाम लोक में फैला हुवा है। शङ्का-जव कि चलने की और ठहरने की शक्ति जीव द्रव्य में या पुद्गल द्रव्य में है तो वह अपनी शक्ति से ही चलता हैं वा ठहरता है। धर्मद्रव्य या अधर्मद्रव्य उसमे क्या करते हैं। उत्तर- ठीक है चलने की शक्ति वो' जीव द्रव्य की है मगर धर्म द्रव्य के निमित्त से वह चल सकता है ऐसा जैन सिद्धान्त है जैसा कि वल्वार्थ सूत्र नामक महाशास्त्र में- उर्द्धगच्छत्यालोकान्तान् यानी मुक्ति होते समयमें जीव लोक के अन्तपर्यन्त 'नियम से उपर को चला जाता है यह बात सही है किन्तु यह आगे क्यों नही जाता इस प्रकार की शंका इसमें आधमकती
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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