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________________ लिये छोड़ दिया और आप किसी गाछ के नीचे आराम करने लगा। थोड़ी देर में बड़ी जोर की आन्धी चलने लगी और सांझ होगई इसी बीच में वह घोडा चरते चरते दूर चला गया उसके बदले वहां पर एक गधा आकर चरने लगा अब जब वह मुसाफिर वापिस घरको चलने के लिये उठा तो उस गधे पर चढ़ कर चल दिया अन्धेरी रात मे रास्ता भूळ गया अपने घरके भरोसे किसी सरायमे घुसा । अब उस गधेको तो अपना घोड़ा,सराय को अपना घर मान रहा है उसीके झाड़ने पोछने और साफ करने में लग रहा है । यह मेरा घोड़ा बड़ाचुस्त तेज चलने वाला है, यह मेरा घर भी पका अच्छा बना हुआ है। इस तरह विचारता है सो क्या वह उसका घोड़ा और घर है क्या ? किन्तु नही है । तो क्या उसमे उसका घोड़ा और घर कहीं छुपा हुवा है ? सो भी नही। और न वहां पर उलटापन ही है अर्थात्- एलटकर उपर का नीचे तथा नीचे का भाग उपर होगया हुवा हो सो बात भी नही है वहां तो और का और ही है गधे को घोड़ा और सराय को घर कहा जारहा है वस तो यही संसारी आत्मा का हाल है सो बताते है - वस्तु द्वयं मूलतयाऽत्रमाति यच्चेतनाचेतननामजाति । आद्योऽयमात्मा खलु . जीवनामास्वभावतो विश्वविदेकधामा ८॥ अर्थात्- इस दुनियां में मूलरूप से दो तरह की वस्तु
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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