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________________ चतुरनीय-सूत्र (१०० ) पापकर्म करनेवाले प्राणी इस भांति हमेशा बदलती रहनेवाली योनियों में वारवार पैदा होते रहते है, कितु इमदुसपूर्ण ससार से कभी पिन्न नहीं होने जैने दुख पूर्ण राज्य से क्षत्रिय । जो प्राणी काम-वामनानी से विमूट है, वे भयकर दुस तथा वेदना भोगते हुए चिरकाल तक मनुप्येतर योनियो मे भटकते रहते हैं। (१०२) समार में परिभ्रमण करते-करते जब कभी बहुत काल में पापरमों का वेग क्षीण होता है और उसके फलस्वरूप अन्तरात्मा क्रमश शुद्धि को प्राप्त होता है। तब कही मनुष्य-जन्म मिलता है। मनुष्य-गरीर पा लेने पर भी मद्धर्म का श्रवण दुर्लभ है, जिसे मुनकर मनुष्य तप, क्षमा और अहिंसा को स्वीकार करते है । (१०४ ) मौभाग्य से यदि कभी धर्म का श्रवण प्राप्त भी हो जाता है, तो उसपर श्रद्धा का होना तो अत्यन्त दुर्लभ है । कारण कि बहुतसे लोग न्यायमार्ग को-सत्य-सिद्धात को सुनकर भी उससे दूर ही रहते है-उसपर विश्वास नहीं लाते।
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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