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________________ ( ) उचर- ठीक है द्रव्यता के रूपमे सभी द्रव्य अनाद्यनिधन हैं न तो कोई भी द्रव्य किसी के द्वारा पैदा ही किया हुआ है और न कभी वह नष्ट ही होगा। अतः न तो कोई द्रव्य किसी द्रव्य का कार्य ही है और न कारण ही, क्योंकि कार्य-कारणता पर्याय दृष्टि में होती है । हरेक द्रव्य में उस गुण की पूर्वपर्याय का नाश और उत्तर पर्याय का उत्पाद होता रहता है। पर्याय अर्थपर्याय और व्यञ्जन पर्याय के भेद से दो प्रकार की होती है। प्रतिसमय सूक्ष्म सदृश परिणमन होता रहता है उसका नाम अर्थ पर्याय है वह सहज होती रहती है । परन्तु द्रव्यत्वगुण के परिवर्तन रूप जो व्यञ्जन पर्याय होती है वह पर द्रव्य सापेक्ष ही होती है देखो कि हरेक पुद्गल परमाणु में उमके रूप रस गन्ध और स्पर्श गुण का परिणमन सहज स्वतन्त्र होता रहता है परन्तु वही स्कन्धरूपता में दूसरे परमाणु के संयोग विना नही आता । मतलब भिन्न भिन्न दो परमाणुवों में जो स्कन्धपना आता है वह उनमे परम्पर एक दूसरे के द्वारा ही आता है इसको कौन समझदार स्वीकार नहीं करेगा । दो परमाणु मिल कर जो स्कन्ध बना वह उनकी रक य्यञ्जन पर्याय हुई व्यञ्जनपर्याय को ही कार्य कहते हैं जो कि उपादान और निमित्त विशेप देनों की सहयोगिता से होता है अन्यथा नही होता ऐसा हमारे हरेक आचार्य बतलागये हैं। तथा मोक्षमार्ग-प्रकाश ' के अधिकार दो पृष्ठ ६३ में पं० टोडरमल जी लिखते हैंकि निमित्त न वने तो न पलटे । अर्थात्- निमित्त न होवे वो
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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