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________________ - - - - - - - जो कि जखम या कोह खुजली मे पड़जाते है उसी प्रकार विषय भोगने से चौरासीलाख योनियों में महाघोर नरक कुत्ती सूकरी की तरह आना जाना पड़ता है यही जखम दुस्तर है और भी जो विचारे विषय भोग जो हैं वो विष का भी विप है परन्तु विष के खाने से तो मनुष्य को एक ही बार मरना पड़ता है मगर विपय भोगनेसे वार २ जन्म मरण आवागमन के चकरम आना जाना पड़ता है इससे आपको जहांतक होसके विषय और विश्नों का परित्याग करते रहो, जितना २ परित्याग करते रहोगे उतने ही प्रभू सच्चिदानन्द धन परब्रह्म परमात्मा के पास पहुंच जावोगे । अथवा उसको ही प्राप्त करलोगे, क्योंकि प्रभू जो है सो निर्विपय है ऐसे ही आपको भी निर्विपय होना चाहिये कि आपको अखण्ड सुख शान्ति मिल जावेगी और आप इस संसार से छूट कर परमानन्द अमरपद की नित्य प्राप्ति हो जावेगी । फिर आप मेहरवानी करके मेरे इस अनुभव तथा लेखको रोजाना पाठ किया करें अथवा ध्यान किया करे यह गुदरीवाले की वाणी पर विश्वास करना यह मेरी विनती प्रार्थना है स्त्री-पुरुपों से । क्यों कि यह मनुष्य योनि तो भोगो के लिये नही मिलती है यह तो मोगों का खातमा करने के लिये मिलती है सो भी गुरुवो की कृपादृष्टि सत्संग अनुभवी की शरण में जाकरके उस ईश्वर तथा उस परब्रह्म अथवा अपने इष्टदेव की प्राप्ति कर मकते हो और सत्गुरुदेव की शरण भी लेली उनके सत्संग में भी गये परन्तु
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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