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________________ ( १६८ ) का कर रहा है तो उसका ज्योतिष वगेरह का ज्ञान कहीं चला जाता है, क्या ? नहीं, अपितु मोजूद रहता है, परन्तु उसके उपयोग में वैद्यकज्ञान उस समय आता है वैसे ही सम्यग्दृष्टिजीव भी खाना पीना वगेरह लौकिक काम कर रहा होता है वो. उसके उपयोग में तो कर्मचेतना या कर्मफलचेतना होती हैफिर भी लब्धिरूप से ज्ञानचेतना बनी रहती है ऐसा स्पप्ट मतलब समझ में आता है। उचर- भैया जी सुनो पण्डित जी की तो पण्डित जी जाने मगर हमारे पूज्य जैनाचार्यो.का तो ऐसा कहना नहीं है क्यों कि- "चेत्यते अनुभूयते उपयुज्यते इति चेतना" इस. प्रकार चेतना नाम ही जब कि उपयोग का है तो फिर लन्धिरूपचेतना चीज ही क्या रही, कुछ नहीं। अपितु इस जीव का. उपयोग, इष्टानिष्ट विकल्प से सर्वथा. रहित एवं पूर्ण वीतरागरूप होता है उस समय उसके ज्ञानचेतना होती है ताकि उसके, बन्ध नहीं होता । किन्तु उससे, नीचे सराग अवस्था में भले. ही, वह तत्वार्थ के विपरीत श्रद्धान. वालायहिरात्मा हो चाहे सत्यनद्धानयुक्त अनुत्कृष्ट अन्तरात्मा, दोनों के ही अज्ञानचेतना होती है जो कि, यथासम्भव ज्ञानावरणादि. कर्मों का बन्ध करनेवाली होती है और जो कि.अपनी शुद्ध आत्मा के सिवाय और.किसी बात पर करने.रूप या होने रूप में प्रस्तुत रहती है; जैसा, कि श्री आत्माख्याति में लिखा है
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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