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________________ ( १११ ) जो कि औपशमिकादि भावमय होता है और राग है सो किभाव है। उत्तर- तुम्हारा कहना ठीक है राग औदयिक ही होता है और सम्यग्दर्शनादि धर्म उससे विरुद्ध औपशमिकादिभावरूप मगर मन्दराग जो होता है वह औपशमिकादिभाव रूपता को एवं श्रयिकपन को भी लिये हुये उभय रूप होता है। रागमें जो मन्दता होती है वह उपशमादि द्वारा ही तो आती है अन्यथा कैसे सकती है। एवं राग और धर्म एक साथ होते हैं उसीका नाम सरागधर्म या व्यवहार धर्म हे उसके साथ चित्त की उपयोगरूप लग्न होती है उसे धर्मध्यान कहते हैं। शङ्का- आप तो कहते हैं कि धर्मध्यानमें यधासम्भव प्रदयि कादि पांचों भावों का ही चिन्तवन होता है किन्तु समयसारजी की जयसेनाचार्यकृत तात्पर्यवृत्ति में लिखा हुवा है कि श्रपशमिकादिरूप अशुद्ध पारिणामिकभाव व ध्यानरूप होता है तथा शुद्धपारिणामिक भावध्येय यानी उस ध्यान के द्वारा चिन्तवन करनेयोग्य ऐसा देखोगा ०३२० की वृत्तिः • उत्तर- यहां पर जो लिखा गया हुवा है वह शुक्ल-ध्यान को लक्ष्य करके उसकी वावत में लिखा गया है। धर्मध्यान में तो सभी भावध्येय होते हैं, देखो श्री चामुण्डराय कृत चारित्रसार में लिखा है कि आज्ञाविचय धर्मध्यान में गति आदि चोदह मार्गणावों द्वारा तथा चोदह गुणस्थानों द्वारा जीवका चिन्तवन
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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