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________________ ( ११० ) - - वैसे ही व्यवहारधर्म का विध्वंश यानी पूर्ण होना ही निश्चय धर्म का होना है अतः व्यवहार धर्म कारण है तो निश्चय धर्म उसका कार्य, जैसा कि हमारे पूर्वाचार्यों ने जगह जगह बतलाया है। शंका- श्रीपरमात्माप्रकाश जी की संस्कृत दीका में पृष्ठ १४२ पर इस प्रकार प्रश्न उठाकर कि-निश्चय मोक्षमार्ग तो निर्विकल्प है और उस समय सविकल्प मोक्षमार्ग है नही तो वह ( सविकल्प मोक्षमार्ग) साधक कैसे हुवा, इसके उत्तर में बतलाया है कि भूतनैगमनय की अपेक्षा से परम्परा से साधक होता है, अर्थात्-पहले वह था किन्तु वर्तमान में नही है तथापि भूतनैगमनय से वह हे ऐसा संकल्पकर के उसे साधक कहा है यों लिखा है। उत्तर- मैय्या जी! वहां अगर यह लिखा है तो ठीक ही तो लिखा है क्योंकि मोक्ष १ निश्चयमोक्षमार्ग२ व्यवहारमोक्षमार्ग३ इसप्रकार तीनबात हुई सो व्यवहारमोक्षमार्ग तो निश्चयमोक्षमार्ग का कारण है और नियमोक्षमार्ग मोक्ष का कारण । अब व्यवहार मोक्षमार्ग को मोक्ष का जो कारण बताया जाय तो वह मोक्ष की तो परम्परा कारण ही है । साक्षात् कारण तो कई (व्यवहार मोक्षमार्ग) 'निश्चयमोक्षमार्ग का होता है, जैसा कि तत्वार्थसारकार लिख रहे हैं। शंका- आपने उपर जो व्यवहार धर्म और मन्दराग को एक बतलाया सो कैसे क्यों कि धर्म तो सम्यग्दर्शनादिरूप है
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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