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________________ - ( ५ ) - -- - - - - - - - कभी नहीं मारा ! मुझे तो मेरा कार्य सिद्ध करना है, कौरवों की पक्ष का निपात करना है फिर चाहे वह गुरु हो या और कोई ऐसा दुर्विचार कभी नहीं किया क्योंकि वह मानता था कि- हानि लाभ जीवन मरण, यश अपयश विधि हाथ । तो फिर इस संसार, में क्यों कीजे दुर्वात ।। इस कहावत के अनुसार जो होना है सो होगा, हमें विजय मिलनी है सो मिलेहीगी और नहीं तो फिर हम कैसा भी क्यों न करे, कुछ नही होगा। सांसारिक कार्यों में तो प्रधान बल देव का ही होता है, वन्दा तो अपने दो हाथ दिखाया करता है। देखो रावण ने अपना उल्लू सीधा करने के लिये क्या कसर बाकी छोड़ी था परन्तु उस का बल उसी को खागया, उसी के चक्र ने उसका शिर काट डाला । सुमीम को उसके भाग्य ने साथ दिया तो परशुराम की भोजन शाला में उसके लिये दिया हुवा थाल ही सुदर्शन चक्र बन करके उसकी सहायता करने लगा और समुद्र के बीच में उसे एक व्यन्तर ने बात की बात में मार डाला । इत्यादि बातों से मानना पड़ता है कि मनुष्य का किया कुछ नही होता फिर व्यर्थ के प्रलोभन में पड़ कर कुकर्म क्यों किया जावे इस प्रकार शोधता हुवा वह सदा कर्तव्यपरायण बना रहता है अपने ऊपर होने वाली आपत्ति का कुछ विचार न करके औरों को विपत्ति से मुक्त कर रखने की चेप्टा करता है देखो
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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