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________________ ( १ ). - - - फसर ही क्या है ? नैय्या किनारे पर लगी हुई है, यह उठ कर छलांग मारे तो घाट पर आकर खड़ा हो सकता है,इसके करने का काम तो इसे ही चरना चाहिये किन्तु यह तो प्रमादी हो रहा है, प्रथम तो जिन वाणी के सुनने का नाम भी इसे नही माता अगर कही सुनता भी है कि- यह शरीर धारी जीव पराश्रय में फंस कर रागी द्वोपी हो रहा है ताकि दुःखी है, यदि पराश्रय को छोड़ दे तो राग द्वेप से भी रहित होकर शुद्ध सच्चिदानन्द बन सकता है ऐसा । तो इसमे से पहले वाली बात को तो पकड़ लेता है कि हां जिन वाणी ठीक कहती है-मैं पराये वश हूँ इस लिये रख और गम की उलझन से दुःख पाता हूं विलकुल सही बात है इत्यादि मगर आगे वाली बात पर ध्यान नहीं देता, भुला ही देता है । याद भी रखता है तो कहता है कि पराश्रय छूटे तो सुख हो सो पराश्रय का छूटना मेरे हाथ की बात थोड़े ही है,पर की है वह छोडे वो मैं छूटू। जैसे कि- एक बन्दर ने चनों के घड़े में अपने दोनों हाथ डाल दिये और चनों की मुट्ठी भर कर निकालने लगा घड़े का मुंह छोटा है सो फंस रहता है, शोचता है कि घड़े ने मुझे पकड़ लिया है । या किसी पागलने कौतुकमें आकर किसी खम्मे को अपनी वाथ में भर लिया, दोनों हाथों के कङ्क जोड़ लिये और कहता है कि मुझे खम्भे ने पकड़ लिया है वस ऐसा ही इस संसारी का हाल है । परतन्त्रता की ओर ही वो मुकता स्वभाव का सम्मान इसकी बुद्धि में नही जम पावा यह इसके
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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