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________________ ==सम्यक विचार देवं गुरुं श्रुतं वंदे, धर्मशुद्धं च विंदते । तिअर्थ अर्थलोक च, स्नानं च शुद्धं जलं ॥८॥ आतम ही है देव निरंजन, आतम ही सद्गुरु भाई । आतम शास्त्र, धर्म आतम ही. तीर्थ आत्म ही सुखदाई ॥ आत्म-मनन ही है रत्नत्रय-पूरित अवगाहन सुखधाम | ऐसे देव, शास्त्र, सद्गुरुवर, धर्मतीर्थ को सतत प्रणाम ।। आत्मा ही सच्चा देव है; आत्मा ही मचा गुरु है; आत्मा ही मचा शास्त्र है; आत्मा ही मना धम है और आत्मा ही सच्चा तीर्थ है। और यदि वास्तव में पूछा जाय तो रत्नत्रय से पूरित इस श्रात्मा का मनन ही एक मात्र सच्चा स्नान है। ऐसे आत्मा रूपी देव, गुरु, शास्त्र, धर्म और तीर्थ को मैं नित्य मन वचन काय से प्रणाम करना है। चेतना लक्षणो धर्मो, चेतियंति मदा बुधै । ध्यानस्य जलं शुद्ध, ज्ञानं स्नान पंडितः ॥९॥ चिदानन्द ध्रुव शुद्ध आत्मा, की चेतनता है पहिचान । बुद्धिमान जन नित्य निरन्तर, धरते हैं उमही का ध्यान ।। नदी सरोवर में करते हैं, अवगाहन जड़ अज्ञानी । आत्म-ज्ञान-जल से प्रक्षालन, करते सत्पंडित ज्ञानी ॥ प्रात्मा का लक्षण चेतना से संयुक्त है और इसी चेतना के नाते, बुद्धि के धनी बुद्धिमान जन उसका अहर्निश मनन करते हैं । नदी, सरोवर और कुण्डों में तो ( धर्मभाव से ) केवल स्थूल-बुद्धि के मानव म्नान करते हैं, किन्तु जो प्रज्ञाधारी पंडित होते हैं, वे प्रात्म-मनन के जलाशय में ही स्नान करके अपने को पूर्ण पवित्र और कृत्यकृत्य मानते हैं।
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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