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________________ सम्यक आचार [१४१ पट् कमलं त्रि उकार, ध्यानं ध्यायन्ति मदा बुधै । पंच दीप्तं च विदंत, स्वात्म दरसन दरमनं ॥२५८॥ करते दिगम्बर साधु नितप्रति, स्वात्म का ही ध्यान हैं । इस ध्यान से वे प्राप्त करते, पंचज्ञान महान हैं । होते हैं वे इस भांति से रे, ओम ओतप्रोत हैं । पट कमल लगते हैं उन्हें, ओंकार के ही श्रोत हैं॥ जो ज्ञानवान दिगम्बर साधु होते हैं, वे सदा आत्मा का ही ध्यान किया करते हैं और इसी के द्वारा पंचज्ञानों को वे प्रत्यक्ष अनुभव में ले जाते हैं। आत्मा का ध्यान करते करते उनकी आत्मानुभूति इतनी बढ़ जाती है कि उनको अपने शरीर में स्थित छहों कमल ओम से ओतप्रोत जान पड़ने लगते हैं, अर्थात वे स्वयं का ओम् से श्रोतप्रोत समझने लग जाते हैं। अवधं जेन मंपूरनं, ऋजु विपुर्व च दिस्टते। मनपर्जय केवलं न्यानं, जिन रूबी उत्तम बुधै ॥२५९॥ जो पूर्ण विधि से हो चुके रे ! अवधिज्ञान निधान हैं । ऋजु, विपुल जिनके हृदय में, देते झलक असमान हैं। जो मनःपर्यय और केवलज्ञान के आधार हैं । वे ही दिगम्बर साधु, उत्तम पात्र जिन उनहार हैं। जो अवधिज्ञान को प्राप्त कर चुके हैं। दोनो प्रकार के ऋजुमति व विपुलमति मनःपयय ज्ञान का भी जिनके हृदय में श्राभास हुआ करता है तथा केवलज्ञान की प्राप्ति में जिनका सतत अभ्यास चालू है, वही जिनेन्द्र भगवान के साक्षान स्वरूप निम्रन्थ गुरु दान के उत्तम पात्र समझे जाते हैं।
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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