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________________ १४.] सम्यक् आचार मत्पात्रों को विवेकपूर्ण दान पात्रों के भंद पात्रं त्रिविधि जाने. दानं नम्य मुभावना । जिन रूपी उत्कृष्टं च, अत्रतं जघन्यं भवेन ॥२५६॥ विज्ञो ! सुनो यह कह रहे. सर्वज्ञभाषित शास्त्र हैं । वसुधातली में दान के रे ! तीन उत्तम पात्र हैं। निर्ग्रन्थ गुरु उत्कृष्ट, मध्यम शुद्ध दृष्टि निधान हैं । निकृष्ट वे जो व्रत रहित हैं. किन्तु समकितवान हैं । sho dhe she जिनको दान दिया जाता है, दान के वे पात्र तीन प्रकार के होते हैं। जितेन्द्रिय भगवान के साक्षात् स्वरूप निग्रन्थ गुरु उत्कृष्ट पात्र और व्रत रहित सम्यग्दृष्टी जघन्य पात्र होते हैं। मध्यम पात्र वे सम्यग्दृष्टि जीव होते हैं, जो प्रगाढ़ श्रद्धान के साथ साथ नियम से व्रतों की माधना भी किया करते हैं। उत्तम पात्र निग्रन्थ साधु उत्तमं जिन रूर्व च, जिन उक्तं ममाचरेत् । तिअर्थ जोयते जेन, उर्ध अर्धं च मध्यमं ॥२५७॥ जिनका हृदय त्रय रत्नपुंजों का, अगाध निधान है । तीनों भुवन करता प्रकाशित. सतत जिनका ज्ञान है ॥ जिनके चरित्राधार, श्री सर्वज्ञ भाषित शास्त्र हैं । वे ही दिगम्बर साधु भन्यो, सुनो उत्तम पात्र हैं। जिनका हृदय रत्नत्रय से परिपूर्ण होता है; जो अपने ज्ञान से ऊर्ध्वलोक, अधोलोक व मध्यलोक सम्यक् विधि से जानते हैं तथा जो इन्द्रियों के नाथ, अष्टकमों को चूर्ण करने वाले वीतराग भगवान की आज्ञा के अनुसार चलते हैं, वही निग्रन्थ परिग्रहों से शून्य साधु, दान के उत्तम पात्र गिने जाते हैं।
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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