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________________ सम्यक आचार .... [७९ परिणाम जस्य विचलंते, विभ्रमं रूप चिंतनं । आलापं श्रुत आनंई. विकहा पर दार मेवनं ॥१४०॥ विकथा-कथन से चलित. हो जाते हृदय परिणाम हैं । होते हैं विभ्रम के ही इससे, दर्श आठों याम हैं। कामादि के कुश्रुत सुना, यह सजग करती काम है । इससे ही विकथा को दिया, 'परदार-सेवन' नाम है ॥ the the विकथाओं का श्रवण करना कुशील सेवन के समान क्यों ? इसीलिये कि विकथाओं को सुनने में आत्मा के परिणाम चल विचल हो जाते हैं; वस्तुस्वरूप को भूलकर पुरुप विभ्रम में पड़ जाता है और उसका ध्यान काम संवर्द्धक कथाओं की ओर आकृष्ट हो जाता है। ये सारी बातें अब्रह्म में सन्निहित है और कुशील का ही दूसरा नाम अब्रह्म है। मनादि काय विचलंति, इन्द्रिय विषय रंजितं । . व्रत खंड सर्व धर्मस्य, अनृत अचेत मार्द्धयं ॥१४१॥ विकथा-कथन से चलित हो जाते सुजान ! त्रियोग हैं । पाते हैं इससे वृद्धि ही, नित भोग रूपी रोग हैं ।। व्रत खंड कर भरती हृदय में, यह अरे ! कुज्ञान है । जड़वाद में करती नियम से, यह अमिट श्रद्धान है। the sho विकथाओं के कहने सुनने से मन, वचन, कायों के परिणाम विचलित हो जाते हैं और मनुष्य इन्द्रियों के विषय भागों में मत्त हो जाता है। विकथाएं मनुष्य के मारे व्रतों व धमों को पल भर में खंडिन कर देती हैं और इसके श्रोता व वक्ता नियम से अन्त व अचेत पदार्थों में श्रद्धा करने लग जाते हैं।
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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